दिल्ली `अाप' की

Delhi belongs to Aam Aadmi Party 5July2018
 सत्ता की जंग में केजरीवाल जीते - उप-राज्यपाल को निर्णय का स्वतंत्र अधिकार नहीं - सुप्रीम बेंच ने तय किया शासन का व्यापक पैमाना

नई दिल्ली, 4 जुलाई-(भाषा)
उच्चतम न्यायालय ने अाज केन्द्र के साथ अाप सरकार की सत्ता को लेकर तीखी जंग में दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाते हुये कहा कि उप-राज्यपाल के पास फैसले करने का कोई स्वतंत्र अधिकार नहीं है तथा वह निर्वाचित सरकार की मदद और सलाह से ही काम करने के लिये बाध्य हैं। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पाँच सदस्यीय संविधान पीठ ने राष्ट्रीय राजधानी के शासन के लिये व्यापक पैमाना निर्धारित कर दिया है। दिल्ली में 2014 में अाम अादमी पार्टी के सत्ता में अाने के बाद से केन्द्र और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों को लेकर गंभीर टकराव की स्थिति बनी हुई थी।

इस दौरान दो उप-राज्यपाल-अनिल बैजल और उनसे पहले नजीब जंग के साथ मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का टकराव होता रहा। केजरीवाल दोनों पर ही केन्द्र के इशारे पर उनकी सरकार के काम में बाधा डालने के अारोप लगाते रहे हैं। अाज के फैसले ने केजरीवाल को सही ठहराया है, जो लंबे वक्त से उप-राज्यपाल पर केन्द्र के इशारे पर उनकी सरकार को सही ढंग से काम करने से रोकने का अारोप लगाते रहे हैं। इस फैसले ने पहली बार उप-राज्यपाल के अाचरण को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश तय किये और दिल्ली में कार्यपालिका की दो शाखाअों की शक्तियों को स्पष्ट किया। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं है, लेकिन वह अपने विधायक और सरकार चुनती है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि के मुद्दों को छोड़कर दिल्ली सरकार को अन्य मुद्दों पर कानून बनाने और शासन की शक्ति प्राप्त है। प्रधान न्यायाधीश मिश्रा ने अपनी तथा न्यायमूर्ति ए.के. सीकरी और न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर की ओर से लिखे 237 पृष्ठ के फैसले में कहा कि उप-राज्यपाल को निर्णय करने का कोई स्वतंत्र अधिकार नहीं दिया गया है। उन्हें या तो मंत्रिपरिषद की मदद और सलाह से काम करना होगा या फिर वे राष्ट्रपति के पास उनके द्वारा भेजे गये मामले में लिये गये निर्णय को लागू करने के लिये बाध्य हैं।   
   
पीठ ने कहा कि यह पूरी तरह साफ है कि किसी कल्पना में भी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली को संविधान की मौजूदा व्यवस्था के अंतर्गत राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। फैसले में कहा गया है, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली का एक विशिष्ट दर्जा है और दिल्ली के उप-राज्यपाल का पद राज्य के राज्यपाल जैसा नहीं है, बाल्कि वह एक सीमित तात्पर्य में एक प्रशासक ही हैं और उप-राज्यपाल के पद के साथ काम करते हैं।

फैसले में संविधान को रचनात्मक बताते हुये यह भी स्पष्ट किया गया है कि इसमें निरंकुशता के लिये कोई जगह नहीं है। इसमें अराजकतावाद के लिये भी कोई स्थान नहीं है। संविधान पीठ के फैसले में दिल्ली के अधिकारों और उसके दर्जे से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 239 एए की व्याख्या से संबंधित पेचीदा सवालों का भी जवाब दिया गया, जिन्हें लेकर दिल्ली सरकार और केन्द्र के बीच जंग छिड़ी थी और जिन पर अब दो तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ विचार करेगी।

पीठ ने उन सांविधानिक प्रावधानों पर अपनी राय दी, जिन्हें छोटी पीठ ने उसके पास भेजा था। संविधान पीठ ने कहा कि अब दिल्ली उच्च न्यायालय के छह अगस्त, 2016 के फैसले के खिलाफ दायर तमाम अपीलें नियमित उचित पीठ के समक्ष सुनवाई के लिये सूचीबद्ध होंगी। उच्च न्यायालय ने कहा था कि उप-राज्यपाल दिल्ली के प्रशासनिक मुखिया हैं। संविधान पीठ ने कहा कि यद्यपि उप-राज्यपाल नाम मात्र के मुखिया नहीं हैं, उनके व्यवहार से ऐसा नहीं प्रतीत होना चाहिए कि मंत्रिपरिषद के प्रति उनका एक विरोधी जैसा रवैया है, बाल्कि उनका रवैया सुविधा मुहैया कराने का होना चाहिए।

न्यायालय ने यह भी कहा कि उप-राज्यपाल को यांत्रिक तरीके से काम नहीं करना चाहिए। उप-राज्यपाल और मंत्रिपरिषद को किसी भी विषय पर मतभेदों को बातचीत के जरिये सुलझाने का प्रयास करना चाहिए। पीठ ने स्पष्ट किया कि मंत्रिपरिषद के फैसलों को उप-राज्यपाल को बताया जाना चाहिये लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हर मामले में उनकी अनुमति की जरूरत है। न्यायमूर्ति धनन्जय वाई. चन्द्रचूड़ ने मुख्य फैसले से सहमति व्यक्त करते हुये अपने 175 पेज के निर्णय में कहा कि उप-राज्यपाल को ध्यान रखना चाहिए कि यह मंत्रिपरिषद ही है, जो निर्णय लेती है। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 239 एए के प्रावधानों को इस तरह से लागू करना चाहिए, जिससे वे सुविधा प्रदान करें और दिल्ली में शासन में बाधा नहीं डाले।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने भी अपने अलग 123 पेज के फैसले में कहा कि दिल्ली विधान सभा निर्वाचित प्रतिनिधियों का प्रतिनिधित्व करती है और राष्ट्रपति के पास मामला भेजने के उप-राज्यपाल के फैसले के इतर अन्य सभी मामलों में उसकी राय और फैसलों का सम्मान होना चाहिए।

अब कामों की रफ्तार बढ़ेगी

उच्चतम न्यायालय द्वारा अाज दिल्ली के उप-राज्यपाल को स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का अधिकार नहीं होने का फैसला सुनाये जाने के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कैबिनेट की बैठक बुलाई और अफसरों को राशन की घरों पर अापूर्ति और सीसीटीवी कैमरे लगाने जैसी परियोजनाअों की रफ्तार तेज करने का निर्देश दिया। दिल्ली सरकार ने नौकरशाहों के तबादलों और तैनातियों के लिए भी एक नयी प्रणाली अाज शुरू की, जिसके लिए मंजूरी देने का अधिकार मुख्यमंत्री केजरीवाल को दिया गया है।

उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने करीब अाठ मिनट तक चली मंत्रिमंडल की बैठक के बाद संवाददाता सम्मेलन में कहा कि अधिकारियों को उच्चतम न्यायालय के अादेश के अनुसार काम करने का निर्देश दिया गया है। सिसोदिया ने कहा कि केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच सत्ता संघर्ष पर शीर्ष अदालत के फैसले के बाद अाप सरकार को अपने हर निर्णय को उप-राज्यपाल अनिल बैजल से मंजूर कराने की जरूरत नहीं है।

उच्चतम न्यायालय ने अाज एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता, लेकिन यह भी कहा कि उप-राज्यपाल को स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार नहीं है।  केजरीवाल ने बैठक के बाद ट्वीट किया, दिल्ली सरकार के सभी अधिकारियों को निर्देश दिया कि माननीय उच्चतम न्यायालय के अादेश के अनुसार कामकाज करें। अब राशन की घरों पर अापूर्ति और सीसीटीवी लगाने के प्रस्तावों पर भी तेजी लाने का निर्देश दिया है।
उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद दिल्ली सरकार ने नौकरशाहों के तबादलों और तैनातियों के लिए भी एक नयी प्रणाली अाज शुरू की, जिसके लिए मंजूरी देने का अधिकार मुख्यमंत्री केजरीवाल को दिया गया है।

अभी तक अाईएएस और दानिक्स (दिल्ली, अंडमान निकोबार द्वीपसमूह सिविल सेवा) अधिकारियों के तबादलों और तैनातियों के लिए मंजूरी देने का अधिकार उप-राज्यपाल के पास रहा है। हालाँकि दिल्ली सरकार में कार्यरत वरिष्ठ नौकरशाहों ने दावा किया कि सेवा संबंधी मामले अब भी उप-राज्यपाल के कार्यालय के अधिकार क्षेत्र में अाते हैं, क्योंकि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है। एक शीर्ष अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा कि उच्चतम न्यायालय की यथोचित नियमित पीठ सेवा संबंधी मामलों और अन्य मुद्दों पर अंतिम निर्णय करेगी। एक अन्य अधिकारी ने दावा किया कि शीर्ष अदालत ने गृह मंत्रालय की मई, 2015 की अधिसूचना को रद्द नहीं किया है, जिसके मुताबिक सेवा संबंधी मामले उप-राज्यपाल के अधीन अाते हैं।

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