मन में उनके प्रति प्यार उमड़ अाया और कबीर को दीक्षा दे दी। सच्ची लगन और श्रद्धा युक्त अग्रगण्य कबीर ने स्वयं के मन को भी और अपने गुरू रामानुजाचार्य के मन को भी जीत लिया था।
बनारस में नीरू व नीमा नामक जुलाहा दंपत्ति को लहरतारा नामक तालाब से एक बालक मिला। उन्होंने उसका नाम कबीर रखा। अपनी संतान समझ कर उसका पालन-पोषण किया।
कबीर की साधु-संतों के प्रति अगाध श्रद्धा थी। वह चाहता था कि संत रामानुजाचार्य से उन्हें ज्ञान मिले। शिष्य बनने हेतु वह बार-बार रामानुजाचार्य के पास जाता, लेकिन रामानुजाचार्य उन्हें अपना शिष्य नहीं बनाना चाहते थे। शिष्य बनने की लगन से एक दिन प्रात: मुंह अंधेरे कबीर गंगाजी के उस घाट पर जा पहुंचे, जहां रामानुजाचार्य स्नान किया करते थे। उस दिन कबीर की सच्ची श्रद्धा को देख कर रामानुजाचार्य के मन में उनके प्रति प्यार उमड़ अाया और कबीर को दीक्षा दे दी।
सच्ची लगन और श्रद्धा युक्त अग्रगण्य कबीर ने स्वयं के मन को भी और अपने गुरू रामानुजाचार्य के मन को भी जीत लिया था।
प्रस्तुति : बनीसिंह जांगड़ा