भक्ति सबसे बड़ा धन : अनिरूद्ध खांडलजी

हैदराबाद, 17 अगस्त-(चन्द्रभान अार.)
`जीवन में सबसे बड़ा धन भक्ति का है। जो भक्त भगवान के सहारे रहते हैं, उनका भगवान सदैव साथ देते हैं। मुसीबत की घड़ी में प्रभु सबसे अागे रहते हैं।'

उक्त उद्गार बेगम बाजार स्थित माहेश्वरी भवन में मारवाड़ी महिला मित्र मंडल, बेगम बाजार द्वारा अायोजित नानीबाई रो मायरो के प्रथम दिवस प्रभु भक्ति की महत्ता बताते हुए कथावाचक अनिरूद्ध खांडल ने व्यक्त किये। अनिरूद्धा खांडल ने कहा कि जिस प्रकार नरसी मेहता का भाग्य है, वैसा सभी का होना चाहिए, क्योंकि प्रभु ने नरसी मेहता को टोपी पहनाई।
इसी प्रकार सभी भक्तों को चाह होती है कि प्रभु उन्हें भी टोपी पहनाएँ, ताकि उसे कोई संसारी जीव टोपी न पहना सके। प्रभु ने नरसी मेहता को टोपी के साथ राग केदार दिया और कहा कि जब भी यह राग बजेगा, वे प्रकट हो जायेंगे। प्रभु ने भजन के लिए कड़ताल, तुलसी की कंठी अादि दी और कहा भगवान का खूब प्रचार करो। नरसी मेहता संसार पर ध्यान दिये बगैर प्रभु का भजन किया करते थे। प्रभु ने ही विश्वकर्मा को नरसी के लिए जूनागढ़ में मोटी दीवार वाली कोठी बनाने और अकरूरजी को 12 पीढि़यों तक खा सके इतना धन दिया। प्रभु की भक्ति में नरसी मेहता ने उस सम्पत्ति को मात्र 12 माह में संतों की सेवा भंडारे इत्यादि में खर्च कर दिया। इसके बाद नरसी महेता के पास कोठी के अलावा कुछ नहीं बचा।

अनिरूद्ध खंडाल ने अागे कहा कि जो लोग संतों पर खर्च करते हैं, उनको कई गुना प्रभु प्रदान करते हैं। इसलिए संतों की सेवा नरसी मेहता की तरह करें, जो सैदव भगवान के भजन में लीन रहते थे। एक दिन चार संतों ने नरसी मेहता को एक हजार मुद्रा से भरी पोटली देकर इसे द्वारिका में वसूल करने हेतु हुंडी दी। नरसी मेहता के पास धन नहीं था और नरसी मेहता ने प्रभु के सहारे ही हुंडी लिखी। द्वारिका में सांवारिया सेठ (भगवान) से लेने की पर्ची लिखी। नरसी मेहता ने प्रभु से अाग्रह किया कि वे हुंडी इन चारों संतों को द्वारिका में थमा दें, क्योंकि इन संतों द्वारा दी गयी यह पूँजी मंदिर बनाने के लिए खर्च की जा रही थी। महाराज ने कहा कि जो प्रभु के सहारे रहते हैं, उसके कार्य अपने अाप होते चले जाते हैं। इसलिए जीवन में संतों की सेवा और धार्मिक कार्यों में रूचि रखें, ताकि भक्त का भगवान से संपर्क सदैव बना रहे।
अवसर पर मारवाड़ी महिला मित्र मंडल की सदस्याएँ बड़ी संख्या में उपस्थित थीं।
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