ये बता कि कारवाँ क्यों लुटा

स्विस बैंक के खातों में भारतीयों की जमा राशि में अचानक आए उछाल पर सरकार द्वारा दी गई सफाई `निर्दोष' नहीं है। वित्त-मंत्री पीयूष गोयल की दलील है कि सारा जमा पैसा `काला' ही हो, यह जरूरी नहीं। अरुण जेटली ने भी मिलती-जुलती सफ़ाई दी है। लेकिन ये दोनों महान नेता जो सफ़ाई दे रहे हैं, उसमें नयापन क्या है? सारे देशवासी न सही, शहरी क्षेत्रों के बैंक से लेन-देन करने वाले लोग जरूर यह जानते हैं कि किसी बैंक में जमा सारा पैसा काला नहीं होता। उसमें स़फेदी भी लिपटी रहती है। इसीलिए ऐसी सफ़ाई देकर प्रबुद्ध जनता को बेवकूफ बनाने की कोशिश न की जाए तो बेहतर होगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपना 56 इंची सीना फुलाकर बड़े गर्व से कहते थे कि `पहले चर्चा होती थी, कितना गया..लेकिन अब चर्चा होती है, कितना आया?' इस तरह की दम्भी बातों की वजह यह थी कि काले धन के खिलाफ अभियान के दौरान स्विस बैंकों में जमा भारतीय पैसों का आंकड़ा तीन साल तक घटता रहा था। लेकिन अचानक 2017 में स्विस बैंकों में जमा रकम उछल गई। जमापूँजी में 50 प्रतिशत का इज़ाफा हो गया। सवाल उठता है, ऐसा क्यों और कैसे हुअा?

पाठकों को याद दिला दें कि `नोटबदली' के दौर में वित्त-मंत्री अरुण जेटली ने कई बार यह बातें कही और दोहराई थीं कि `बैंक में जमा कर देने मात्र से कोई रकम व्हाइट नहीं हो जाती। हिसाब बताना पड़ता है, सफाई देनी पड़ती है।' अस्तु, आज मोदी सरकार इस मामले में साफ़-साफ़ सवालिया कठघरे में है और उसे साफ-साफ बताना चाहिए कि चौकीदार द्वारा नोटबदली के बावजूद इतनी रकम स्विस बैंक में कैसे पहुंच गई?

पीयूष गोयल और जेटली जी को अपनी गिरेबान में झाँककर मान लेना चाहिए कि कालेधन के खिलाफ अभियान चलाने की सरकार की कोशिशों को झटका ज़रूर लगा है। विपक्ष ने तो खैर सरकारी दावों की `क्रेडिबिलिटी' पर सवाल उठाए ही हैं, कई साथियों ने भी इस स्थिति को लेकर सरकार को घेरा है। इनमें सबसे बड़ा नाम सुब्रह्मण्यम स्वामी का लिया जा सकता है। एक बात और, रकम जमा करने का यह मामला अभी तो सिर्फ स्विस बैंक का है। दुनिया में और तमाम विदेशी बैंक (भारतीयों के संदर्भ में) हैं, जहाँ भारतीयों ने अपना पैसा जमा करवाया होगा, तो क्या उसकी चर्चा नहीं की जानी चाहिए?

यहाँ यह भी नहीं भूलना चाहिए कि प्रधानमंत्री मोदी ने जब `नोटबंदी' का ऐलान किया था, तब उन्होंने इसे कालेधन के खिलाफ सबसे बड़ी `सार्जिकल स्ट्राइक' बताया था। अस्तु, उनसे पूछा जा सकता है कि `सर्जरी' फेल कैसे हो गई? आश्चर्यजनक है, तो इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी! बोल-बातिया रहे हैं, तो उनके मंत्री! वह भी हजम न हो सकने वाली भाषा में। इसलिए बशीर बद्र के शब्दों में हम पूरी सरकार से सादर निवेदन करना चाहेंगे कि :

तू इधर-उधर की न बात कर
ये बता कि कारवाँ क्यों लुटा।
मुझे रहज़नों से गिला नहीं
तेरी रहबरी से सवाल है।।

क्या मोदी जी और उनकी सरकार यह मानेगी कि उनकी `नोटबंदी' और `नोटबदली' का यह एक `साइड इफेक्ट' है? भारतीयों का पैसा `तड़ीपार' हो गया, या करा दिया गया? गोयल साहब कहते हैं, जल्द मिलेगा `डाटा।' लेकिन देशवासी कहते हैं, `हमें `डाटा' नहीं `आटा' चाहिए। स्विस बैंक में जमा धन में से जितना भी काला है, वह वापस कब आएगा और वह किस-किस भले आदमी का है, यह देशवासियों को बताया कब जाएगा?' जेटली जी कमज़ोर आवाज़ में सफाई दे रहे हैं कि `स्विस बैंकों' में जमा सारा पैसा काला ही नहीं है, फिर भी होगी सख्त कार्रवाई।'

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