शत्रु बना मित्र

राजा अपने महल में सो रहा था। उसे सपने में अाकर किसी साधु ने कहा, `कल रात को तुम्हें एक विषैला सांप काटेगा। वह सर्प उस अाम के पेड़ की जड़ में रहता है। वह तुमसे पूर्वजन्म की शत्रुता का बदला लेना चाहता है।'

प्रातः उठ कर राजा ने निर्णय लिया कि वह सर्प के साथ मधुर व्यवहार करके उसका हृदय परिवर्तित कर देगा। राजा ने उस पेड़ की जड़ से लेकर अपनी शय्या तक फूलों का बिछौना बिछवया, सुगंधित द्रव्यों का छिड़काव किया, जगह-जगह मीठे दूध के कटोरे रखव दिये। रात के समय सांप अपनी बांबी से निकल कर राजा के महल की ओर जाने लगा। वह जैसे-जैसे अागे बढ़ता गया, उसके लिए की गई स्वगत व्यवस्था को देख कर अानन्दित होता गया। उसके मन में स्नेह उमड़ अाया। सद् व्यवहार, नम्रता व मधुरता के जादू ने उसे मंत्रमुग्ध कर दिया।

सर्प राजा के शयन-कक्ष में पहुँचा। उसने सोचा जिसका ऐसा मधुर व्यवहार है, उस धर्मात्मा को मैं कैसे काटूं? उसने राजा से कहा, `राजन! मैं तुम्हें काट कर पूर्वजन्म का बदला लेने अाया था, लेकिन तुम्हारे सद् व्यवहार ने मुझे परास्त कर दिया। अब मैं तुम्हारा शत्रु नहीं, बल्कि मित्र हूँ। मित्रता के उपहार स्वरूप अपनी बहुमूल्य मणि तुम्हें दे रहा हूँ।'

- जैन जसराज देवड़ा धोका
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