बंधनों से मुक्त होना ही मोक्ष पारसमुनिजी

हैदराबाद, 29 जून-(चन्द्रभान अार.)
`संसार में कषाय और विषय के भाव होते हैं। कषाय विषय के भावों में धर्म नहीं है। प्रभु भक्ति, गुरू सेवा नहीं, बल्कि कषाय विषय ही अात्मा को भयंकर बनाते हैं।'

अाज यहाँ प्रचार संयोजक मनोज कोठारी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, खैरताबाद जैन स्थानक में अायोजित धर्मसभा में चम्पकगच्छ तपस्वीराज पारसमुनिजी म.सा. ने उक्त उद्गार व्यक्त किए। प्रवचन को अागे बढ़ाते हुए म.सा. ने कहा कि कषाय विषय का सेवन धर्म है, पाप है। इसलिए संसार जंगल है। कषाय विषय की क्रिया अात्मा को सत्वहीन बना देती है। कषाय की वृद्धि विषयों द्वारा होती है। विषय को विष समान बताया गया है। विषय अासक्ति रूप है। इससे राग भाव में वृद्धि होती है। विषय पाँच इन्द्रियों को विषय परक बनाते हैं। धर्म का पतन विषयों के निमित्त से होता है। रूप से अाकार्षित तितली अपने प्राण गंवाती है। सुगंध के कारण सर्प बंदीवान बनता है। कर्ण शोरहीन हिरण संगीत में मस्त बनकर पारधि की जाल में फंस जाते हैं। रसास्वाद के कारण मछली को प्राण खोने पड़ते हैं। स्पर्श सुख के लिए गजराज बंदी बन जाते हैं। एक-एक इन्द्रियों के विषय से प्राण चले जाते हैं, तो फिर पाँचों इन्द्रियों के विषयों में अासक्त जीवों का क्या होगा? विषय विनाश को अामंत्रण देते हैं। संसार के सुख पुद्गल के अधीन होने से पराधीन होते हैं। संसार जंगल है।

पारसमुनिजी ने अागे कहा जिन शासन जीवन को उपवन बनाता है। बंधनों से मुक्त होना ही मोक्ष प्राप्त करना है। भगवान ने कहा है कि जीवन असंस्कृत है। इसलिए प्रमाद मत करो। प्रमादी विकास करने में असमर्थ होते हैं। प्रमाद पाँच प्रकार के हैं। मद, विषय, कषाय, निंदा और विरूधा। इनमें प्रथम अभिमान, साधना में अहितकारी है। मैं ही अच्छा, ऊँचा, प्रभावशाली और पुण्यशाली हूँ, यह करने वाला व्यक्ति दूसरों को तुच्छ मानता है। महावीर का कथन है कि सभी अात्माएँ समान हैं। न कोई तुच्छ है और न ही कोई उच्च है। व्यक्ति के अपने कर्म से ही ऊँच-नीच का भेद होता है। अभिमान चला गया, तो सभी एक हो जाएँगे। कषाय से मुक्त होना है, तो विषयों से मुक्त होना होगा। विषय जाएगा, तो धर्म होगा। सभी का मंगल हो, यही अानंद है। अवसर पर नवरतनमल गुन्देचा ने कहा कि म.सा. का शनिवार, 30 जून का प्रवचन लूणिया धर्मशाला, हनुमान टेकड़ी में सुबह 9.15 से 10.15 बजे तक रहेगा। उन्होंने श्रावकों से अधिक से अधिक संख्या में पधारकर म.सा. के दर्शन-वंदन और प्रवचन का लाभ लेने का अाग्रह किया।
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