सुख क्षणिक, आनंद अविनाशी-शिवानंदजी

Happiness is momentary, bliss imperishable - Shivanandji
हैदराबाद, तीर्थ में सुख की चाह से नहीं, बल्कि आनंद की चाह से जाएँ। सुख और आनंद में फर्क है। सुख संसारिक है, जबकि आनंद पारलौकिक है। सुख क्षण में नष्ट हो जाता है, लेकिन आनंद अविनाशी है, जो आनंद में रमता है, वही भक्तिमय बन जाता है।

उक्त उद्गार सिद्दिअंबर बाजार स्थित बाहेती भवन में राजस्थानी जागृति समिति द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के पांचवे दिन कथा का महत्व बताते हुए शिवानंदजी भाई श्रीजी महाराज ने व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि भगवान सदैव नंद और यशोदा के घर आते हैं, लेकिन हमारे घर इसलिए नहीं आते, क्योंकि हम नंद-यशोदा नहीं बनते। नंद जो सदैव दूसरों को आनंद दे, आनंदित रहे और यशोदा जो दूसरे के यशों का गान करे। व्यक्ति हमेशा से ही पड़ोसी की चुगली करता है, इसलिए गोविन्द जीवन में नहीं आते। नंद बाबा लाला की आने की खुशी में चहुँ ओर धन लुटाते रहे और बधाई गाई गई। सभी भगवान के दर्शन कर रहे। जब द्वादशी तिथि आई, तो भोले बाबा के मन में दर्शन की चाह जगी और वृंदावन और लाला के दर्शन किये।

महाराज ने कहा कि भगवान के दर्शन के लिए  एकाग्रता का होना आवश्यक है। तीर्थ में जाएँ तो एकाग्रता से दर्शन का भाव रखें। आपका मित्र साथ नहीं जाता, तो तीर्थ यात्रा को रद्द मत करें। रिश्ते नाते तभी तक साथ देते हैं, जब तक शरीर जलाया न जाए। जिस समय संसार को छोड़कर जाएंगे, तो कोई भी साथ नहीं जाएगा, लेकिन अपने साथ किये गये पुण्य, दान, भजन और सत्संग साथ जाते हैं। इसमें बंटवारा नहीं होता। जिसका है वही अपने साथ लेकर जाता है। भक्ति में बंटवारा नहीं होता। प्रभु भक्ति एकाग्र मन से अकेले होकर की जाती है। भक्ति किसी पर निर्भर नहीं रहती, इसके लिए एकाग्र मन जरूरी है। हमारी पहली नजर भगवान के चरणों पर जानी चाहिए, फिर नुपुर देखो, फिर कटि भाग और ड्रेस, मुरली, मोर पंख के बाद मुख मंडल देखें, तभी राघव चित्त पर चिपकेगा। चित लगाएंगे तभी तो चित्त से चिपकेंगे।  अध्यक्ष श्रीनिवास सोमानी ने किया। साथ ही भक्तों ने गोवर्धन पूजा कर छप्पन भोग के दर्शन किये। 
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