गिरी मुफ्ती सरकार - राष्ट्रपति शासन की ओर जम्मू-कश्मीर

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नई दिल्ली/श्रीनगर, 19 जून
भाजपा द्वारा अाज पीडीपी से समर्थन वापस ले लिए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में तीन साल पुरानी महबूबा मुफ्ती सरकार गिर गई। सरकार गिरने के बाद राज्य में एक बार फिर राज्यपाल शासन लागू होना तय है।
भाजपा महासचिव राम माधव के चौंकाने वाले इस ऐलान से पहले पार्टी अालाकमान ने जम्मू-कश्मीर सरकार में अपने मंत्रियों को अापातकालीन विचार-विमर्श के लिए नई दिल्ली बुलाया था। श्रीनगर और नई दिल्ली में बढ़ी राजनीतिक हलचल के बीच मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने वुछ ही घंटे बाद राज्यपाल एन.एन. वोहरा को अपना इस्तीफा सौंप दिया।
माधव ने अानन-फानन में बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन में पत्रकारों को बताया कि राज्य की गठबंधन सरकार में बने रहना भाजपा के लिए जटिल हो गया था। श्रीनगर में अपनी राय जाहिर करते हुए महबूबा ने कहा कि पीडीपी ने हमेशा कहा है कि राज्य में बल प्रयोग वाली सुरक्षा नीति नहीं चलेगी और मेलमिलाप को ही अहमियत देना होगा।
मुख्यमंत्री के तौर पर अपना इस्तीफा सौंपने के बाद पीडीपी नेता ने कहा कि हम जम्मू-कश्मीर में वार्ता और मेल-मिलाप की कोशिश जारी रखेंगे।
राज्य विधानसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी नेशनल कांÖोंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने इस पूरे वाकये पर एक पंक्ति में अपनी बात कही, पैरों के नीचे से गलीचा खींच लिए जाने की बजाय काश महबूबा मुफ्ती ने खुद ही इस्तीफा दे दिया होता।
दिसंबर-2014 में जम्मू-कश्मीर की 87 सदस्यीय विधानसभा के लिए हुए चुनावों में भाजपा को 25, पीडीपी को 28, नेशनल कांÖोंस को 15, कांग्रेस को 12 और अन्य को सात सीटें मिली थीं। इन चुनावों के दो महीने बाद पीडीपी और भाजपा ने राज्य में गठबंधन सरकार बना ली थी। भाजपा और पीडीपी ने विधानसभा चुनावों के दौरान एक-दूसरे के खिलाफ जमकर प्रचार किया था, लेकिन बाद में गठबंधन का एजेंडा तैयार कर इस उम्मीद से सरकार बनाई कि राज्य को हिंसा के वुच¯ा से बाहर लाने में मदद मिलेगी, लेकिन शासन पर इस गठबंधन की पूरी पकड़ कभी नहीं हो पाई और दोनों पार्टियाँ ज्यादातर मुद्दों पर असहमत रहीं। इस बीच, राज्य में सुरक्षा हालात बिगड़ते रहे।
बहरहाल, उमर और कांग्रेस ने कहा है कि वे राज्य में सरकार बनाने के लिए किसी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। भाजपा ने कहा कि वह राज्यपाल शासन लागू करने के पक्ष में है।
राज्य में यदि राज्यपाल शासन लगाया गया, तो यह 2008 के बाद चौथा और 1977 के बाद अाठवाँ मौका होगा, जब राज्य में राज्यपाल शासन लागू किया गया।
माधव ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से विचार-विमर्श करने के बाद गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेने का फैसला किया गया। माधव के संवाददाता सम्मेलन के तुरंत बाद पीडीपी के वरिष्ठ मंत्री और पार्टी के मुख्य प्रववÌता नईम अख्तर ने श्रीनगर में पत्रकारों से कहा कि भाजपा के फैसले से उनकी पार्टी हैरान हैं। कश्मीर घाटी के हालात में सुधार नहीं होने के लिए भाजपा ने पीडीपी पर ठीकरा फोड़ा। माधव ने पिछले हफ्ते श्रीनगर के कड़ी सुरक्षा वाले प्रेस एनवÌलेव इलाके में जानेमाने पत्रकार शुजात बुखारी की अज्ञात हमलावरों द्वारा की गई हत्या का भी जि¯ा किया। उसी दिन ईद की छुट्टियों पर जा रहे थलसेना के जवान औरंगजेब को अगवा कर लिया गया था और फिर उनकी हत्या कर दी गई थी। ये दोनों घटनाएँ ईद से दो दिन पहले हुईं।
माधव ने कहा कि यह ध्यान में रखते हुए कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और राज्य में मौजूदा हालात पर काबू पाना है, हमने फैसला किया है कि राज्य में सत्ता की कमान राज्यपाल को सौंप दी जाए। भाजपा नेता ने कहा कि अातंकवाद, हिंसा और कट्टरता बढ़ गई है और जीवन का अधिकार, स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार सहित नागरिकों के कई मौलिक अधिकार खतरे में हैं। श्रीनगर में महबूबा ने इन अारोपों को खारिज करते हुए अपनी सरकार की उपलब्धियाँ गिनाई।
महबूबा ने कहा कि हमने पत्थरबाजों के खिलाफ दर्ज 11,000 मामले वापस लिए, वेंद्रीय गृह-मंत्री (राजनाथ सिंह) द्वारा सभी विचारधारा के लोगों को बातचीत की पेशकश की गई और एकतरफा संघर्षविराम भी किया। जम्मू-कश्मीर के उप-मुख्यमंत्री एवं भाजपा नेता कविंदर गुप्ता ने दिल्ली में पत्रकारों से कहा कि उन्होंने और उनके मंत्रियों ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री को अपने इस्तीफे सौंप दिए हैं। माधव ने कहा कि वेंद्र ने घाटी के लिए सब वुछ किया। हमने पाकिस्तान की ओर से किए जा रहे संघर्ष-विराम उल्लंघन पर पूर्ण विराम लगाने की कोशिश की। पीडीपी अपने वादे पूरे करने में सफल नहीं रही। जम्मू और लद्दाख में विकास कार्यों को लेकर हमारे नेताअों को पीडीपी से काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। उन्होंने कहा कि हम पीडीपी की मंशा पर सवाल नहीं उठा रहे, लेकिन कश्मीर में जीवन की दशा सुधारने में वे नाकाम रहे। 
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