हैदराबाद 23 जून
मेट्रो में सफर करने वाले लोगों को अब मूत्र विसर्जन के बाद पानी का उपयोग करने की अावश्यकता नहीं रहेगी। पूरी तरह भारतीय तकनीकी से निर्माण किए गए वाटरलेस टेक्नालॉजी (यूनिवर्सल)ने सफलतापूर्वक अपने इस प्रयोग को पूरा किया है। टायलेट का उपयोग करने वाले यात्रियों के सुविधार्थ इसका निर्माण किया गया है। इससे टायलेट में दुर्गंध की कोई संभावना नहीं रहेगी। मेट्रो स्टेशनों में इसका उपयोग करने पर विचार किया जा रहा है। अाज से पांच साल पहले मियांपुर स्टेशन में ऐसे ही एक शौचलय की व्यवस्था की गई थी और इसके काफी अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं।
वाटरलेस यूनिवर्सल में बिना पानी के लगातार इसका उपयोग किया जा सकता है। इसमें मैक्रोबॉल नामक एक पदार्थ होता है जो मूत्र को खींच लेता है। इसी तरह भीतर मौजूद यूनी पाइप लाइन इस मूत्र को बाहर भेजने के साथ-साथ दुर्गंध भी अाने नहीं देता है। कई लोगों द्वारा उपयोग लाए जाने के बाद भी इसमæें दुर्गंध नहीं अाती है। शौचालय के उपयोग करने पर सालाना 1.50 लीटर पानी की अावश्यकता होती है। लेकिन इस तरह के शौचालय के लिए पानी की अावश्यकता नहीं होगी। साथ ही इसकी साफ-सफाई के लिए पानी की भी अावश्यकता नहीं पæड़ती है। इससे 96 प्रतिशत पानी की बचत होती है। खास बात यह है कि इस तरह के टायलेट में मूत्र सेरामिक बाल, यूनीपाइप लाइन के जरिए विशेष रूप से तैयार किए गए क्याट्रिजिल के भीतर जाता है। वहाँ अमोनिया बनता है, जो बैक्टीरिया मारने के साथ-साथ मूत्र को पानी में परिर्व्तित कर देता है। इसमें नाइट्रोजन की मात्रा काफी ज्यादा होने से इसे पौधों की सिंचाई के लिए उपयोग किया जा सकता है।
मेट्रो में सफर करने वाले लोगों को अब मूत्र विसर्जन के बाद पानी का उपयोग करने की अावश्यकता नहीं रहेगी। पूरी तरह भारतीय तकनीकी से निर्माण किए गए वाटरलेस टेक्नालॉजी (यूनिवर्सल)ने सफलतापूर्वक अपने इस प्रयोग को पूरा किया है। टायलेट का उपयोग करने वाले यात्रियों के सुविधार्थ इसका निर्माण किया गया है। इससे टायलेट में दुर्गंध की कोई संभावना नहीं रहेगी। मेट्रो स्टेशनों में इसका उपयोग करने पर विचार किया जा रहा है। अाज से पांच साल पहले मियांपुर स्टेशन में ऐसे ही एक शौचलय की व्यवस्था की गई थी और इसके काफी अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं।
वाटरलेस यूनिवर्सल में बिना पानी के लगातार इसका उपयोग किया जा सकता है। इसमें मैक्रोबॉल नामक एक पदार्थ होता है जो मूत्र को खींच लेता है। इसी तरह भीतर मौजूद यूनी पाइप लाइन इस मूत्र को बाहर भेजने के साथ-साथ दुर्गंध भी अाने नहीं देता है। कई लोगों द्वारा उपयोग लाए जाने के बाद भी इसमæें दुर्गंध नहीं अाती है। शौचालय के उपयोग करने पर सालाना 1.50 लीटर पानी की अावश्यकता होती है। लेकिन इस तरह के शौचालय के लिए पानी की अावश्यकता नहीं होगी। साथ ही इसकी साफ-सफाई के लिए पानी की भी अावश्यकता नहीं पæड़ती है। इससे 96 प्रतिशत पानी की बचत होती है। खास बात यह है कि इस तरह के टायलेट में मूत्र सेरामिक बाल, यूनीपाइप लाइन के जरिए विशेष रूप से तैयार किए गए क्याट्रिजिल के भीतर जाता है। वहाँ अमोनिया बनता है, जो बैक्टीरिया मारने के साथ-साथ मूत्र को पानी में परिर्व्तित कर देता है। इसमें नाइट्रोजन की मात्रा काफी ज्यादा होने से इसे पौधों की सिंचाई के लिए उपयोग किया जा सकता है।