बंजारा हिल्स स्थित होटल अवर पैलेस में अायोजित सत्संग को संबोधित करते हुए सद्गुरू रमेशजी। (फोटो: मिलाप)
हैदराबाद, 5 जुलाई-(मिलाप ब्यूरो)
बंजारा हिल्स स्थित होटल अवर पैलेस में अायोजित सत्संग को संबोधित करते हुए सद्गुरू रमेशजी ने कहा कि व्यक्ति मंदिर-मस्जिद, गुरूद्वारा, चर्च एवं अन्य तीर्थ स्थलों पर जप-तप, यज्ञ, पूजा-पाठ, व्रत, उपवास अादि विधियों से परमात्मा का प्रयास करता है। परमात्मा को बाहर खोजने की प्रवृत्ति इतनी बढ़ गयी है कि लोग अपने भीतर झाँकने की कोशिश ही नहीं करते हैं। ज्ञानियों ने कहा कि सभी हृदय में प्रभु का वास है।
सदगुरू ने अागे कहा कि पूरा संसार और उसकी माया बाहर है। मनुष्य स्वयं भी बाहरी चीजों पर ही ध्यान देता है और उसकी ओर आकर्षित होता है। इन सभी में वह इतना उलझा रहता है कि हृदय के भीतर दया, ममता, करूणा, प्रेम, स्नेह अादि के रूप में मौजूद दैवीय गुण को नहीं देख पाता है। ऐसी स्थिति में गुरू अथवा परमात्मा की शरणागती व्यक्ति को दिशा देती है। इससे जीवन की कठिनाइयों का सरलता से सामना करने की शक्ति मिलती है।
अात्मा और परमात्मा के मिलन के सूत्र बताते हुए रमेश जी ने कहा कि जब हम सुसुप्ता अवस्था में होते है, तो माया से दूर होते है। उस अवस्था में ही वास्तविक अानंद की प्राप्ति होती है। क्योंकि इस अवस्था में अात्मा की चेतना और परमात्मा की चेतना का मिलन सीधे श्वासों के माध्यम से होता है। यदि हम श्वास में परमात्मा की चेतना की अनुभूति करे तो स्थायी रूप से अानंद स्थिति में पहुँच सकते हैं। इसलिए जीवन में अंर्तदृष्टि को अपनाना जरूरी है। वस्तुअों, व्यक्तियों और परिस्थितियों में परमात्मा और उनकी कृपा के दर्शन करेंगे, तो कल्याण निश्चित रूप से होगा। अवसर पर गुरू माँ ने कहा कि सत, चित्त और अानंदरूपी गुणों से युक्त परमात्मा से इतना प्रेम करे कि बिना माँगे ही वे सब कुछ दें।