पापा की हार

kahani

`मम्मा, कितनी बार कहूँ, स्वूल में साइंस का प्रोजेक्ट है। पता है, विशेष ने कितना अच्छा प्रोजेक्ट बनाया, अाप मुझे उससे भी अच्छा प्रोजेक्ट बना कर दो।' कहते हुए अयान जिद करने लगा।
अयान को जब भी प्रोजेक्ट दिया जाता तो वो अपेक्षा के पीछे लग जाता कि वो ही उसे बना कर दे, ताकि उसका प्रोजेक्ट बेस्ट हो।
`अयान तुम करो तो मम्मा हेल्प करेगी!' अपेक्षा ने उसे समझाया।
`नहीं मम्मा अाप बनाओ ना, प्लीज!'
अपेक्षा ने उसे सोलार सिस्टम पर बने वीडियो दिखाया। एक छोटा-सा बच्चा उस पर प्रोजेक्ट बना रहा था। पता नहीं अपेक्षा को क्या सूझा और उसने कहा, `अयान, ये बच्चा बहुत टैलेंटेड है। इसने कितना सुंदर प्रोजेक्ट बनाया है। इसे रहने देते हैं, तुमसे नहीं हो पायेगा।' अपेक्षा की बात अयान को बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी।
`अच्छा, तो देखना ये प्रोजेक्ट मैं अापको करके ही बताऊंगा, वो भी अपने अाप।' अात्मविश्वास के साथ अयान कहने लगा।

अपेक्षा के चेहरे पर विजयी मुस्कान छा गयी, उसका तीर निशाने पर लगा। वो अॉफिस के लिए रवाना हो गयी। लंच टाइम था, कुछ याद अाया, तो उसने ड्रॉर खोल कर एक तस्वीर निकाली, जो उसके पापा की थी। तस्वीर उसे यादों के गलियारों में ले गयी।
जबसे उसने होश संभाला अपने पापा का कड़क मिज़ाज़ ही देखा। दोनों भाइयों से छोटी अपेक्षा घर में सबकी लाडली थी। उस पर दोनों भाई जान छिड़कते थे। मगर पापा के सामने किसी की भी नहीं चलती थी। उसे याद है, जब उसने पापा से टेनिस की कोचिंग की बात की तो उन्होंने कहा था, `क्या कहा, टेनिस कोचिंग! तुम जानती भी हो टेनिस के लिए कितना स्टैमिना चाहिए होता है! जरा देखो अपने अापको, दो दिन में तुम्हारा ये टेनिस का भूत उतर जाएगा। देख लेना, तुम्हारे बस का नहीं है ये टेनिस।'
उस दिन पापा की बात सुन कर वह बहुत रोई थी, लेकिन तभी ठान लिया था कि पापा की सोच के विपरीत ही करके बताऊंगी। उसने खूब मेहनत की और नतीजा यह निकला कि वो अपने स्वूल की बेस्ट टेनिस प्लेयर बन गई। उसके बाद भी कभी ऐसा नहीं हुअा कि पापा ने उसकी तारीफ की हो। उसे याद है, जब वो अपनी पसंद के विषय न होने के कारण दिल्ली के कॉलेज में एडमिशन लेना चाहती थी तो पापा ने कहा था, `अकेले रहना इतना अासान नहीं है, वो भी होस्टल में। यहाँ सब घर में तुम्हारे इतने नखरे उठाते हैं। होस्टल के अपने नियम-कायदे होते हैं। दिल्ली जैसे बड़े शहर में तुम्हारे मदद के लिए भाई नहीं होंगे।'
पापा का जवाब सुन कर उसे बहुत गुस्सा अाया और उसने अगले ही दिन भैया से कह कर दिल्ली यूनिवर्सिटी का फॉर्म मँगवा लिया। नाजों से पली अपेक्षा के लिए दिल्ली का सफर अासान नहीं था। होस्टल का खाना और कमरे के चूहों ने उसके हौसले को इतना डिगा दिया था कि उसने सामान पैक करने की तैयारी कर ली, मगर तभी पापा का जीत से दमदमाता चेहरा उसके सामने अा गया। हर सब्ज़ी के लिए नाक-भौंह सिकोड़ती लड़की होस्टल में रह कर लौकी की सब्जी भी खाना सीख गई। ग्रेजुएशन में अच्छे नंबरों से पास हुई। घर में सब लोग बहुत खुश हुए। बधाइयों का तांता लग गया, मगर पापा के मुंह से तारीफ के दो बोल नहीं फूटे।
रात के समय खाना खाते हुए उसने पापा से कहा, `पापा, मैं दिल्ली में रह कर ही सिविल सर्विसेज की तैयारी करना चाहती हूँ।'
`मेरी मानो तो तुम बीएड कर लो, टीचर की सरकारी नौकरी कर लेना, वही ठीक रहेगी। सिविल सर्विसेज कोई बच्चों का खेल नहीं है। लोगों को बरसों लग जाते हैं, तुम इतना नहीं कर पाओगी।'
बरसों से मन में बसी अाग ज्वालामुखी बन कर फूट ही पड़ी और उसने कहा, `हाँ पापा, मुझसे तो कुछ नहीं होगा। मैं तो हूँ ही नालायक, पर देख लेना अापकी ये नालायक बेटी अापको अफसर बन कर ही बताएगी।'
 भरी अांखों के साथ अपेक्षा कमरे में अपना सामान बांधने लगी। वो समझ गयी कि चाहे वो कितना भी कर ले पापा उसे कभी नहीं समझ पाएंगे। दो साल दिल्ली में रह कर उसने जी तोड़ मेहनत की और उसका सरकारी अॉफिसर बनने का सपना पूरा हुअा। जब वो अॉफिसर बनी तो परिवार में जश्न का माहौल था। रिश्तेदारों से घिरी अपेक्षा की नजरें अपने पापा को ही खोज रही थीं। पापा सामने खड़े थे, चेहरे पर एक मुस्कान के साथ। वो बहुत खुश थी। सामने खड़े शख्स को हरा जो दिया था उसने। एक गर्व से भरी मुस्कान के साथ उसने पापा को देखा, पर पापा वैसे ही शांत खड़े थे। उन्होंने उसकी कोई तारीफ नहीं की। उसे लगा शायद पापा अपनी हार बर्दाश्त नहीं कर पा रहे। उसने उनसे बात नहीं की।
शाम को वह अपने बड़े भाई के बेटे बंटी के साथ खेल रही थी। दोनों एक पजल सॉल्व कर रहे थे।
तभी बंटी ने कहा, `बुअा अाप रहने दो, ये अापसे नहीं होगा।' `अच्छा बंटी के बच्चे, अभी बताती हूँ तुझे।' अपेक्षा पजल सॉल्व करने में लग गयी, पर साथ ही उसका दिमाग दूसरे पजल को भी सॉल्व करने में लगा, बंटी के शब्द `बुअा अापसे नहीं होगा' उसके दिमाग में अब भी गूंज रहे थे। वो वैसे भूल गयी कि जब भी कोई टेनिस का टूर्नामेंट होता तो पापा उसके साथ रहते। उसने देखा भी तो था, पापा की डायरी में उसके मैडल जीतने वाली खबरों की अखबार की कतरनें थीं। उ
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