भास्कर राव इंजीनियर

एस.जी. भास्कर राव को इतना भावुक किसी ने कभी नहीं देखा था। उनकी अांखों से झरझर अांसू बह रहे थे। ओल्ड हॉस्टल के अधिकतर छात्र उनके कमरे के सामने एकत्र हो चुके थे और इस दृश्य को देख कर खुद भी भावुक हुए जा रहे थे। उन्होंने सबको पहले ही बता रखा था कि इसके बाद वह अब दोबारा पेपर देने नहीं अाएंगे। इस बार अन्तिम बार पेपर देने अाए हैं। उसी शाम को उनका गुण्टूर वापसी का रिजर्वेशन था। उनका सामान पैक हो चुका था। बाबू राव कमरे में एक ओर खड़ा हो रहा था। वह पिछले कई सालों से हॉस्टल का चौकीदार था और फुर्सत के समय भास्कर राव की सेवा करता था।
भास्कर राव ने एसअाईटी टेक्नोलॉजिकल इंस्टीटयूट में उस समय प्रवेश लिया था, जब कॉलेज नया खुला था। भास्कर राव गुण्टूर से यहां इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग पढ़ने अाए थे। वह इलेक्ट्रिकल इंजीनियर बन कर ट्रांसफार्मर बनाने की एक पैक्ट्री लगाना चाहते थे। जब भी वह अपने गांव जाते और वहां बिजली न होने के कारण लोगों की परेशानियों को देखते तो उनका मन वेदना से भर जाता था। अाजादी के वर्षों बाद भी उनके गांव में रोशनी नहीं पहुंच पायी थी। बिजली विभाग का जूनियर इंजीनियर हमेशा ट्रांसफार्मर ना होने का रोना रोता था।
बिजली ना होने के कारण गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र तक नहीं खुल पाया था और ना ही प्राइमरी स्कूल। बारिश के समय अंधेरे में डूबी गलियों में चलने को अभिशप्त गांव वाले हर साल तीन-चार लोगों को सर्प दंश से असमय ही काल के गाल में समाते हुए देखते थे। गांव से चार मील की दूरी पर नागालेरू नदी थी, लेकिन बिजली के अभाव में गांव के खेत प्यासे थे। नदी का पानी खेतों तक पहुंचाने के लिए कोई साधन नहीं था। गर्मियों में पीने के पानी का अभाव हो जाता था।
अंधेरे में डूबे गांव में रोशनी पहुंचाने का उनका सपना अब तक अधूरा था। पूरे ग्यारह वर्षों के अथक प्रयास के बाद भी वह इंजीनियर बनने में सफल नहीं हुए थे। वह इंजीनियर बनने का सपना त्याग चुके थे और अपने पैतृक तम्बाकू उत्पादन के बिजनेस में रम चुके थे। उनका विवाह भी हो चुका था और एक नन्हा-मुन्ना भी उनके जीवन में अा चुका था, पर गांव का अंधेरा अब भी उनके मन में कभी-कभी कराहता रहता था और वह बेचैनी अनुभव करने लगते थे। इसी व्यग्रता में वह इंजीनियर बनने का मोह त्याग नहीं पाए थे और इम्तिहान देने पहुंच जाते थे।
ओल्ड हॉस्टल का कमरा नंबर सात भास्कर राव की पहचान था। 1977 में जब उन्होंने कॉलेज में एडमीशन लिया था, तब से वह उसी कमरे में रहते अाए थे। कभी दूसरे कमरे में शिफ्ट नहीं हुए। अनेक शुभचिंतकों ने कमरे को उनके लिए अशुभ तक कह डाला, पर उन्होंने कभी इस बात पर विश्वास नहीं किया। वह हंस कर बात टालते हुए कहते, `सात मई को तो उनका जन्म हुअा है फिर सात नंबर अशुभ कैसे हो सकता है? 1983 में वह कॉलेज के नियमित छात्र नहीं रहे थे, लेकिन जब भी वह परीक्षा देने अाते तो उसी कमरे में रूकते थे। उनके अाने की बात सुन कर ही उस कमरे में रहने वाले लड़के किसी दूसरे कमरे में अपने साथियों के साथ शिफ्ट हो जाते थे। यह उनका दबदबा या डर नहीं था, अपितु उनके प्रति अगाध अादर और श्रद्धा का परिणाम था। हॉस्टल के वार्डन ने भी कभी इस बात पर अापत्ति नहीं की थी। 1983 में अशोक त्रिवेदी उनका रूमेट हुअा करता था। वह भी 1986 में पास हो गया था। उसके बाद विनोद गुरू को वह रूम एलॉट हो गया था, लेकिन भास्कर राव के लिए वह भी सहर्ष रूम छोड़ कर मनोज गोयल के साथ रहने चला गया था। वर्तमान में सचिन माथुर और देवेन्द्र पंचोली उस रूम को शेयर कर रहे थे। भास्कर राव के अाने की खबर सुन कर वे दोनों भी अपने दोस्तों के पास शिफ्ट हो गए थे।
भास्कर राव बहुत ही खुशमिजाज, सह्दयी और संवेदनशील व्यक्ति थे। उनके बारे में कितनी ही बातें और किस्से हॉस्टल में रहने वाले सुनते रहते थे। जीवन सूर्यवंशी तो उन्हें देवतुल्य मानता था।
 ट्रेन से उतरते समय जब उसकी टांग कट गई थी और अत्यधिक खून बह जाने से उसके जीवन पर संकट अा गया था तब भास्कर राव अपना इंस्टåमेण्टेशन का पेपर छोड़ कर उसे खून देने अस्पताल दौड़े अाए थे। जिसने भी जीवन से यह कहानी सुनी उसके मन में स्वमेव ही भास्कर राव ने अपना स्थान बना लिया। पिछले तीन वर्षों से रमेश केसरवानी की कॉलेज फीस और हॉस्टल का खर्च वही वहन कर रहे थे। उसके पिता का अाकस्मिक निधन हो जाने से उसके परिवार में कोई भी कमाने वाला नहीं था। वह पढ़ाई छोड़ कर शिक्षाकमाa बन गया था। उस साल जब भास्कर राव परीक्षा देने अाए और उन्हें रमेश के बारे में पता चला तो वह ना केवल रमेश से मिलने उसके गांव गए अपितु उससे अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने का संकल्प भी कराया। रमेश भी अपने संकल्प के प्रति दृढ़ निकला। शहरयार खान के भाई मुबीन को भास्कर राव ने ही हैदराबाद बैडमिण्टन अकादमी में एडमिशन दिलाया था। वह देश का सबसे प्रतिभाशाली खिलाड़ी था। उसने राज्य बैडमिण्टन स्पर्धा का जूनियर खिताब भी जीत चुका था, किंतु सब्जी का ठेला लगाने वाले पिता के पास उसे अच्छी कोचिंग दिलाने के लिए पैसे नहीं थे।
ऐसे कितने ही किस्से थे, जो भास्कर राव के साथ जुड़े थे। भास्कर राव जब भी पेपर देने अाते और हॉस्टल में रूकते, तो हर किसी के लिए कुछ ना कुछ लेकर जरूर अाते। दिनकर को उन्होंने माउथअॉर्गन लाकर दिया था तो रविन्द्र को गिटार। विनीत को टेनिस का रैकेट दिलाया था तो मनोहर को फाइन अार्ट्स के कॉम्पीटिशन में भाग लेने के लिए शिमला भेजा था। इस समय होस्टल में सभी लड़के उनसे बहुत जूनियर थे। यही कारण था कि हॉस्टल का हर लड़का उनमें अपने गार्जियन का अक्स देखता था। वह जितने दिन हॉस्टल में रूकते वहां का माहौल ही अलग रहता। सब बड़े अनुशासित नजर अाते और ध्यान रखते कि उनके कारण भास्कर राव को जरा भी तकलीफ न हो।
भास्कर राव ने अाने से पहले ही सचिन माथुर को बता दिया था कि इस बार वह अाखिरी बार परीक्षा देने अाये हैं। इसके बाद दोबारा इंजीनियर बनने की कोशिश नहीं कर सकेंगे और अपने पूर्वजों का बिजनेस पूरे मनोयोग से संभालेंगे। सचिन ने यह बात सबको बता दी थी, जिसे जानकर सभी दुःखी थे और दिल से दुअा कर रहे थे कि इस बार उनका सपना जरूर पूरा हो जाए। जिस दिन उनका पेपर था, उस दिन सुबह-सुबह ही राम उपाध्याय ने हनुमान टेकरी का प्रसाद लाकर उन्हें खिलाया था। केसरवानी उनके लिए वाहे गुरू से मन्नत मांगने गया था और शहरयार ने पीली कोठी पर उनके लिए हरी चादर चढ़ाई थी और वहां से तबर्रूख में रेवड़ी तथा मिश्री लेकर अाया था। पूरा ओल्ड हॉस्टल चाहता था कि भास्कर राव यहां से अपनी अभिलाषा पूर्ण कर ही वापस जाए। पेपर होने के दस दिन बाद का उनका रिजर्वेशन था। अतएव इन दिनों में हॉस्टल में उत्सव जैसा माहौल रहा।
एक दिन भास्कर राव ने अपनी तरफ से सबको पार्टी दी। उन्होंने अपने हाथों से सबको इडली बना कर खिलाई। जाने से एक दिन पहले सभी ने मिल कर उनके सम्मान में विदाई पार्टी का अायोजन किया। विदाई पार्टी क्या थी हास्टल डे जैसा रंगारंग धमाल कार्यक्रम था- गीत, संगीत, डांस, चुटकुले और सबसे बढ़ कर भास्कर राव का गायन। कई साल बाद उन्होंने हास्टल में रहने वाले किसी भी लड़के ने उनका गाना नहीं सुना था। पहले उन्होंने नटी समाराव की फिल्मों के कुछ डायलाग सुनाए और फिर एस पी बालासुब्रह्मण्यम के गीत गाए। उसके बाद हेमंत कुमार के एक से बढ़ कर एक सदाबहार गीत सुनाकर सबको चौंका दिया। रात में तीन बजे तक मस्ती भरा कार्यक्रम चलता रहा। किसी की इच्छा नहीं थी कि कार्यक्रम कभी खत्म हो या इस सुहानी रात की सुबह भी हो।
सुबह होते ही बाबूलाल अा गया था और भास्कर राव का सामान पैक करने में उनकी मदद करने। हॉस्टल के दूसरे बच्चे भी उनसे मिलने अा-जा रहे थे। कोई उनके साथ फोटो ले रहा था तो कोई पैर छू कर अाशीर्वाद। सब दुःखी थे, यह जान कर कि वह जा रहे हैं, फिर ना अाने के लिए। राम उपाध्याय उनसे मिल कर रोने लगा।
सामान की पैकिंग पूरी हो चुकी थी। ट्रेन छूटने में लगभग दो घण्टे का समय शेष था। बाबूलाल कमरे के एक कोने में उदास खड़ा लगभग रोने की स्थिति में था। भास्कर राव उसे समझा रहे थे। कुछ बच्चे कमरे के बाहर खड़े थे। देवेन्द्र पंचोली हाथ में एक कागज पकड़े हांफता हुअा अाया। उसके पीछे-पीछे दो लड़के ढोल लेकर अाए और भास्कर राव से लिपट कर रोते हुए कहने लगे, `सर अाप पास हो गये हैं और हमें छोड़ कर जा रहे हैं। हम अापको धूमधाम से विदा करेंगे।'
`क्या कहा देवेन्द्र तुमने! फिर से बोलो! '
`क्या भास्कर राव इंजीनियर बन गया।' कहते हुए भास्कर राव ने भी देवेन्द्र को अपनी बांहों में जकड़ लिया। उनकी अांखों से जलधारा बह निकली।
- अरूण खरे
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