कानपुर, 1 जुलाई-(एजेंसियाँ)
जहाँ एक तरफ पूरे देश में हिन्दू-मुस्लिम धर्मों को लेकर अापस में तनातनी का माहौल है, राम मंदिर मुद्दे को लेकर दोनों पक्षों में जुबानी तकरार चल रही है, वहीं कानपुर की एक मुस्लिम महिला लेखिका ने हिन्दुअों के सबसे बड़े धार्मिक ग्रंथ रामायण का उर्दू अनुवाद किया है।इसके पीछे का उद्देश्य लेखिका ने खुद बताया कि जिन लोगों को हिन्दी नहीं अाती और उर्दू जानते हैं, वो भी मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम के जीवन से परिचित हो सकें। उन्होंने बताया कि इस उर्दू अनुवाद में उन्हें ढेड़ साल का वक्त लगा है।
जिले के प्रेम नगर इलर्किं में रहने वाली महिला डॉ. माहे तलत सिद्दीकी पेशे से लेखिका हैं। उनके पति जुबेर अहमद एक बिजनेस मैन हैं। इनका बेटा सिंगापुर में पढ़ाई कर रहा है। डॉ. माहे ने हिन्दी से पीएचडी की है। इनकी माँ डॉ. महलका एजाज शहर के ही हालिम मुस्लिम डिग्री कॉलेज में उर्दू विभाग की एचओडी रही हैं, जबकि पिता एजाज अहमद लेबर अॉफिस में अधिकारी थे। डॉ. माहे तलत अपनी माँ से प्रेरणा लेकर लेखिका बनीं। हिन्दू और उर्दू से गहरे लगाव ने उन्हें अच्छा राइटर बनने में मदद की।
डॉ. माहे तलत बताती हैं कि करीब दो साल पहले उन्होंने रामायण का उर्दू में रूपांतरण करने की सोची, जिसे पूरा करने में उन्हें डेढ़ साल का समय लगा। वह बताती हैं कि उन्हें तब ये विचार मन मे अाया, जब दो साल पहले शिवाला में रहने वाले पंडित बद्री नारायण तिवारी ने उन्हें रामायण दी थी। रामायण का अध्ययन करने के बाद ही उन्हें इसका उर्दू रूपांतरण करने का विचार मन में अाया, जिसके बाद अपनी माँ से मदद माँग उन्होंने ये कार्य शुरू किया। उनकी माँ ने रामायण के दोहों के अनुवाद में बारीकी से परख कर उसमें इनकी मदद की।
डॉ. माहे बताती हैं कि रामायण का उर्दू में अनुवाद करने के पीछे खास वजह और मकसद है कि जिन्हें उर्दू अाती है, वो भी ऐसे महापुरूष श्रीराम के बारे में जाने जो धरती पर एक अाइडियल के रूप में अवतार लेकर अाये थे। उन्होंने कहा कि जब ये विचार मन में अाया, तो लगा कि लोग इसका विरोध भी करेंगे। पर ऐसा नहीं हुअा, अब सब इस कदम की सराहना कर रहे हैं। हम लोग गंगा जमुना तहजीब से ताल्लुकात रखते हैं, हमारी मिट्टी के कण-कण में मुस्लमान और हिन्दू का खून मिला है, जब कभी कोई दंगा फसाद होता है, तो अाप किसी की चीखपुकार सुनकर यह नहीं बता सकते कि वो हिन्दू चीख रहा है या मुसलमान। चीख कभी हिंदी और उर्दू नहीं होती है। हमारे देश में कुछ मौकापरस्त लोग हैं, जो वहशी दरिन्दे हैं, वही राजनीति के चलते ऐसा करते और कराते हैं। मैं तो चाहती हूँ सब मिलकर रहें और ये चाहती हूँ कि राम मंदिर का मुद्दा जल्द ही सुलझ जाये। वह कहती हैं कि मैं तो हर धर्म के प्रति अास्था रखती हूँ, मैं स्वयं किदवई नगर स्थित रामेश्वरम मंदिर में काव्य पाठ भी करती हूँ।
अागे सोचा है कि अयोध्या जर्किंर वहाँ इस विषय पर साधू संतों से मिलूंगी साथ ही मौलाना और मौलवियों से मिलकर उन्हें इसका महत्व भी बताऊँगी और अाग्रह करूँगी कि हिंदुस्तान एक गुलदस्ता की तरह है, इसे कोई भी तोड़ने का प्रयास न करे। श्रीराम को किसी ने बिना समझे ही लड़ाई का एक माध्यम बना लिया। राम और अल्लाह की कोई लड़ाई नहीं है। वो कहती हैं कि जो महापुरूष हो उसके जीवन से सभी को अनुशरण करना चाहिए, उसमें हिन्दू ,मुस्लिम की कोई भावना नहीं लानी चाहिए।
जहाँ एक तरफ पूरे देश में हिन्दू-मुस्लिम धर्मों को लेकर अापस में तनातनी का माहौल है, राम मंदिर मुद्दे को लेकर दोनों पक्षों में जुबानी तकरार चल रही है, वहीं कानपुर की एक मुस्लिम महिला लेखिका ने हिन्दुअों के सबसे बड़े धार्मिक ग्रंथ रामायण का उर्दू अनुवाद किया है।इसके पीछे का उद्देश्य लेखिका ने खुद बताया कि जिन लोगों को हिन्दी नहीं अाती और उर्दू जानते हैं, वो भी मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम के जीवन से परिचित हो सकें। उन्होंने बताया कि इस उर्दू अनुवाद में उन्हें ढेड़ साल का वक्त लगा है।
जिले के प्रेम नगर इलर्किं में रहने वाली महिला डॉ. माहे तलत सिद्दीकी पेशे से लेखिका हैं। उनके पति जुबेर अहमद एक बिजनेस मैन हैं। इनका बेटा सिंगापुर में पढ़ाई कर रहा है। डॉ. माहे ने हिन्दी से पीएचडी की है। इनकी माँ डॉ. महलका एजाज शहर के ही हालिम मुस्लिम डिग्री कॉलेज में उर्दू विभाग की एचओडी रही हैं, जबकि पिता एजाज अहमद लेबर अॉफिस में अधिकारी थे। डॉ. माहे तलत अपनी माँ से प्रेरणा लेकर लेखिका बनीं। हिन्दू और उर्दू से गहरे लगाव ने उन्हें अच्छा राइटर बनने में मदद की।
डॉ. माहे तलत बताती हैं कि करीब दो साल पहले उन्होंने रामायण का उर्दू में रूपांतरण करने की सोची, जिसे पूरा करने में उन्हें डेढ़ साल का समय लगा। वह बताती हैं कि उन्हें तब ये विचार मन मे अाया, जब दो साल पहले शिवाला में रहने वाले पंडित बद्री नारायण तिवारी ने उन्हें रामायण दी थी। रामायण का अध्ययन करने के बाद ही उन्हें इसका उर्दू रूपांतरण करने का विचार मन में अाया, जिसके बाद अपनी माँ से मदद माँग उन्होंने ये कार्य शुरू किया। उनकी माँ ने रामायण के दोहों के अनुवाद में बारीकी से परख कर उसमें इनकी मदद की।
डॉ. माहे बताती हैं कि रामायण का उर्दू में अनुवाद करने के पीछे खास वजह और मकसद है कि जिन्हें उर्दू अाती है, वो भी ऐसे महापुरूष श्रीराम के बारे में जाने जो धरती पर एक अाइडियल के रूप में अवतार लेकर अाये थे। उन्होंने कहा कि जब ये विचार मन में अाया, तो लगा कि लोग इसका विरोध भी करेंगे। पर ऐसा नहीं हुअा, अब सब इस कदम की सराहना कर रहे हैं। हम लोग गंगा जमुना तहजीब से ताल्लुकात रखते हैं, हमारी मिट्टी के कण-कण में मुस्लमान और हिन्दू का खून मिला है, जब कभी कोई दंगा फसाद होता है, तो अाप किसी की चीखपुकार सुनकर यह नहीं बता सकते कि वो हिन्दू चीख रहा है या मुसलमान। चीख कभी हिंदी और उर्दू नहीं होती है। हमारे देश में कुछ मौकापरस्त लोग हैं, जो वहशी दरिन्दे हैं, वही राजनीति के चलते ऐसा करते और कराते हैं। मैं तो चाहती हूँ सब मिलकर रहें और ये चाहती हूँ कि राम मंदिर का मुद्दा जल्द ही सुलझ जाये। वह कहती हैं कि मैं तो हर धर्म के प्रति अास्था रखती हूँ, मैं स्वयं किदवई नगर स्थित रामेश्वरम मंदिर में काव्य पाठ भी करती हूँ।
अागे सोचा है कि अयोध्या जर्किंर वहाँ इस विषय पर साधू संतों से मिलूंगी साथ ही मौलाना और मौलवियों से मिलकर उन्हें इसका महत्व भी बताऊँगी और अाग्रह करूँगी कि हिंदुस्तान एक गुलदस्ता की तरह है, इसे कोई भी तोड़ने का प्रयास न करे। श्रीराम को किसी ने बिना समझे ही लड़ाई का एक माध्यम बना लिया। राम और अल्लाह की कोई लड़ाई नहीं है। वो कहती हैं कि जो महापुरूष हो उसके जीवन से सभी को अनुशरण करना चाहिए, उसमें हिन्दू ,मुस्लिम की कोई भावना नहीं लानी चाहिए।