नई दिल्ली, 21 अगस्त-(भाषा)
उच्चतम न्यायालय ने राज्यसभा चुनावों में नोटा का विकल्प प्रदान करने संबंधी निर्वाचन अायोग की अधिसूचना अाज निरस्त कर दी। न्यायालय ने कहा कि यह दलबदल और भ्रष्टाचार को प्रवृत्ति को बढ़ावा देगा।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई. चन्द्रचूड़ की पीठ ने कहा कि नोटा का विकल्प सिर्फ प्रत्यक्ष चुनावों के लिये है। यह मत हस्तांतरण के जरिये अानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से होने वाले चुनावों के लिये नहीं है। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि जब हम राज्यसभा की चुनाव प्रक्रिया में नोटा का विकल्प अपनाने के प्रावधान का विश्लेषण करते हैं, जहाँ खुले मतदान की अनुमति होती है और गोपनीयता के लिये कोई जगह नहीं है और जहाँ राजनीतिक दल या दलों का अनुशासन मायने रखता है, तो यह स्पष्ट होता है कि इस विकल्प का प्रतिकूल असर होगा। शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि राज्य सभा चुनावों में नोटा के विकल्प की अनुमति दी गयी, तो यह अप्रत्यक्ष रूप से दलबदल को बढ़ावा देगा। न्यायालय ने राज्यसभा के पिछले चुनावों के दौरान गुजरात विधानसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक शैलेश मनुभाई परमार की याचिका पर यह फैसला सुनाया। इस चुनाव में कांग्रेस ने सांसद अहमद पटेल को अपना प्रत्याशी बनाया था। परमार ने मतपत्रों में नोटा का विकल्प उप़लब्ध कराने की निर्वाचन अायोग की अधिसूचना को चुनौती दी थी। प्रदेश कांग्रेस के नेता ने अारोप लगाया था कि यदि राज्यसभा चुनावों में नोटा के प्रावधान की अनुमति दी गयी, तो इससे खरीद- फरोख्त और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा। निर्वाचन अायोग ने 24 जनवरी, 2014 और 12 नवंबर, 2015 को दो परिपत्र जारी करके राज्यसभा के सदस्यों को ऊपरी सदन के लिये चुनाव में नोटा का बटन दबाने का विकल्प प्रदान किया था।
उच्चतम न्यायालय ने राज्यसभा चुनावों में नोटा का विकल्प प्रदान करने संबंधी निर्वाचन अायोग की अधिसूचना अाज निरस्त कर दी। न्यायालय ने कहा कि यह दलबदल और भ्रष्टाचार को प्रवृत्ति को बढ़ावा देगा।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई. चन्द्रचूड़ की पीठ ने कहा कि नोटा का विकल्प सिर्फ प्रत्यक्ष चुनावों के लिये है। यह मत हस्तांतरण के जरिये अानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से होने वाले चुनावों के लिये नहीं है। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि जब हम राज्यसभा की चुनाव प्रक्रिया में नोटा का विकल्प अपनाने के प्रावधान का विश्लेषण करते हैं, जहाँ खुले मतदान की अनुमति होती है और गोपनीयता के लिये कोई जगह नहीं है और जहाँ राजनीतिक दल या दलों का अनुशासन मायने रखता है, तो यह स्पष्ट होता है कि इस विकल्प का प्रतिकूल असर होगा। शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि राज्य सभा चुनावों में नोटा के विकल्प की अनुमति दी गयी, तो यह अप्रत्यक्ष रूप से दलबदल को बढ़ावा देगा। न्यायालय ने राज्यसभा के पिछले चुनावों के दौरान गुजरात विधानसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक शैलेश मनुभाई परमार की याचिका पर यह फैसला सुनाया। इस चुनाव में कांग्रेस ने सांसद अहमद पटेल को अपना प्रत्याशी बनाया था। परमार ने मतपत्रों में नोटा का विकल्प उप़लब्ध कराने की निर्वाचन अायोग की अधिसूचना को चुनौती दी थी। प्रदेश कांग्रेस के नेता ने अारोप लगाया था कि यदि राज्यसभा चुनावों में नोटा के प्रावधान की अनुमति दी गयी, तो इससे खरीद- फरोख्त और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा। निर्वाचन अायोग ने 24 जनवरी, 2014 और 12 नवंबर, 2015 को दो परिपत्र जारी करके राज्यसभा के सदस्यों को ऊपरी सदन के लिये चुनाव में नोटा का बटन दबाने का विकल्प प्रदान किया था।