जयपुर-राजस्थान में मुख्यमंत्री पद को लेकर तीन दिन तक जयपुर से लेकर दिल्ली तक पॉलिटिकल ड्रामा चलता रहा। पहले गहलोत और सचिन पायलट को दिल्ली बुलाया गया। फिर दिल्ली से जयपुर जाते वक्त दोनों को एयरपोर्ट से लौटने के लिए कहा गया। अगले ही दिन गुरूवार सुबह फिर दिल्ली बुला लिया गया। बैठकों का दौर शुरू हुआ । गहलोत को सीएम बनाकर दो बार एयरपोर्ट के लिए रवाना कर दिया गया। दोनों ही बार वापस बुला लिया गया। इस ड्रामे में किस किरदार ने किस-किस तरह की भूमिका निभाई, इसका कैसे अंत हुआ, पढि़ए तीन दिन तक चले घटनाक्रम की अंदर की पूरी कहानी...
गहलोत को सीएम बनाने के लिए कांग्रेस के कोषाध्यक्ष अहमद पटेल की ओर से पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी। पटेल सोनिया के राजनीतिक सलाहकार रह चुके हैं, जिन्होंने गहलोत को सीएम बनाने के लिए सोनिया और प्रियंका को राजी कर लिया था। फिर इन दोनों ने राहुल को मनाया। पटेल की गहलोत ने तब मदद की थी, जब गुजरात में पटेल राज्यसभा के लिए चुनाव लड़ रहे थे। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सीधे तौर पर पटेल को चुनौती दे रहे थे, तब संकट से उबारने का काम गुजरात प्रभारी के तौर पर अशोक गहलोत ने किया था।
मुख्यमंत्री पद से नीचे ना तो अशोक गहलोत और ना ही सचिन पायलट मानने को तैयार थे। ऐसा लग रहा था कि विवाद खत्म नहीं होगा। पार्टी में तनाव चरम पर पहुँच रहा था। उस समय राहुल गांधी के लिए संकट मोचक के तौर पर पूर्व केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने भूमिका निभाई। यूँ तो पायलट को पहले भी डिप्टी सीएम पद का ऑफर दिया गया, लेकिन पायलट ने इसे स्वीकार नहीं किया था। बाद में जितेंद्र सिंह सचिन पायलट को डिप्टी सीएम के पद पर मनाने में कामयाब रहे। शुक्रवार को जितेंद्र और सचिन पायलट की मुलाकात हुई। सहमति बनाने के बाद ये दोनों राहुल गांधी से मिले। इस दौरान अशोक गहलोत भी मौजूद रहे। चारों की उपस्थिति में सीएम और डिप्टी सीएम पर सहमति बनने के बाद इस ड्रामे का अंत हो गया। सियासत की यह पूरी गणित पिछले तीन दिनों तक दिल्ली और जयपुर के बीच घूमती रही। दिल्ली में राहुल का आवास प्रमुख केन्द्र बना रहा।
पायलट ने राहुल के अागे तर्क रखा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में नतीजे देने की बात है तो गहलोत 1998 में सीएम बनने के बाद 2003 में पार्टी को नहीं जिता पाए। 2008 में सीएम बनने के बाद 2013 में पार्टी हारी। 21 सीटों पर आ गई। गहलोत तब प्रदेश अध्यक्ष क्यों नहीं बने?
पायलट ने राहुल को स्पष्ट किया था कि मैं जाति विशेष की राजनीति नहीं करता। ऐसे में मुझे एक जाति का नेता क्यों बनाया जा रहा है। मध्य-प्रदेश में जाति मायने रखती है, वहाँ कमलनाथ को क्यों चुना गया। गहलोत पहले दिन से ही पूरी तरह कॉन्फिडेंट थे। सीएम पद के लिए उनकी ओर से काफी पहले से ही भूमिका तैयार कर ली गई थी। बेशक प्रदेश में काम नहीं कर रहे थे, लेकिन उन्होंने गुजरात, कर्नाटक और अन्य दूसरे राज्यों में अपने द्वारा किए गए कामों को आलाकमान के आगे गिनाया। गहलोत ने तर्क रखा, जब देश में मोदी लहर थी, उस समय मोदी के गृह राज्य गुजरात में पहुँचकर भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने का काम किया। तर्क दिया गया कि इस भूमिका को कैसे कम आका जा सकता है। इससे फैसला मुश्किल हो गया।
गहलोत को सीएम बनाने के लिए कांग्रेस के कोषाध्यक्ष अहमद पटेल की ओर से पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी। पटेल सोनिया के राजनीतिक सलाहकार रह चुके हैं, जिन्होंने गहलोत को सीएम बनाने के लिए सोनिया और प्रियंका को राजी कर लिया था। फिर इन दोनों ने राहुल को मनाया। पटेल की गहलोत ने तब मदद की थी, जब गुजरात में पटेल राज्यसभा के लिए चुनाव लड़ रहे थे। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सीधे तौर पर पटेल को चुनौती दे रहे थे, तब संकट से उबारने का काम गुजरात प्रभारी के तौर पर अशोक गहलोत ने किया था।
मुख्यमंत्री पद से नीचे ना तो अशोक गहलोत और ना ही सचिन पायलट मानने को तैयार थे। ऐसा लग रहा था कि विवाद खत्म नहीं होगा। पार्टी में तनाव चरम पर पहुँच रहा था। उस समय राहुल गांधी के लिए संकट मोचक के तौर पर पूर्व केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने भूमिका निभाई। यूँ तो पायलट को पहले भी डिप्टी सीएम पद का ऑफर दिया गया, लेकिन पायलट ने इसे स्वीकार नहीं किया था। बाद में जितेंद्र सिंह सचिन पायलट को डिप्टी सीएम के पद पर मनाने में कामयाब रहे। शुक्रवार को जितेंद्र और सचिन पायलट की मुलाकात हुई। सहमति बनाने के बाद ये दोनों राहुल गांधी से मिले। इस दौरान अशोक गहलोत भी मौजूद रहे। चारों की उपस्थिति में सीएम और डिप्टी सीएम पर सहमति बनने के बाद इस ड्रामे का अंत हो गया। सियासत की यह पूरी गणित पिछले तीन दिनों तक दिल्ली और जयपुर के बीच घूमती रही। दिल्ली में राहुल का आवास प्रमुख केन्द्र बना रहा।
पायलट ने राहुल के अागे तर्क रखा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में नतीजे देने की बात है तो गहलोत 1998 में सीएम बनने के बाद 2003 में पार्टी को नहीं जिता पाए। 2008 में सीएम बनने के बाद 2013 में पार्टी हारी। 21 सीटों पर आ गई। गहलोत तब प्रदेश अध्यक्ष क्यों नहीं बने?
पायलट ने राहुल को स्पष्ट किया था कि मैं जाति विशेष की राजनीति नहीं करता। ऐसे में मुझे एक जाति का नेता क्यों बनाया जा रहा है। मध्य-प्रदेश में जाति मायने रखती है, वहाँ कमलनाथ को क्यों चुना गया। गहलोत पहले दिन से ही पूरी तरह कॉन्फिडेंट थे। सीएम पद के लिए उनकी ओर से काफी पहले से ही भूमिका तैयार कर ली गई थी। बेशक प्रदेश में काम नहीं कर रहे थे, लेकिन उन्होंने गुजरात, कर्नाटक और अन्य दूसरे राज्यों में अपने द्वारा किए गए कामों को आलाकमान के आगे गिनाया। गहलोत ने तर्क रखा, जब देश में मोदी लहर थी, उस समय मोदी के गृह राज्य गुजरात में पहुँचकर भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने का काम किया। तर्क दिया गया कि इस भूमिका को कैसे कम आका जा सकता है। इससे फैसला मुश्किल हो गया।