भारत में बड़ी भूमिका नहीं निभा पाई हैं गैर-सरकारी संस्थाएँ - कौशिक सिन्हा

performance of NGOs in India 1july 2018
सीएसअार भारतीय समाज के लिए नया न सही पुराना शब्द भी नहीं है। हाल के दस-पंद्रह वर्षों में कॉर्पोरेट क्षेत्र के उदय के साथ ही इस शब्द ने मीडिया और प्रशासन में अपनी जगह बनायी है। कॉर्पोरेट क्षेत्र को अपनी कमाई में से 2 प्रतिशत हिस्सा सामाजिक कार्यों में लगाना होता है। इसमें किस तरह के काम हो रहे हैं और कार्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसअार) के कारण किस तरह के बदलाव अाये हैं या अा रहे हैं, यह जानने के लिए हमने इस क्षेत्र में लगभग पंद्रह वर्षों से काम कर रहे कौशिक सिन्हा से बातचीत की। वे मेगमा फिनकॉर्प लिमिटेड ग्रुप के वाइस प्रेसिडेंट हैं। इन दिनों वे कंपनी की सीएसअार (कार्पोरेट सोशल रेस्पांसिबिलिटी) की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

उनका जन्म 26 अक्तूबर, 1972 को कोलकाता में हुअा। प्रारंभिक शिक्षा भी वहीं पर प्राप्त की। अंग्रेज़ी से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने इंस्टीट्यूट अॉफ मॉडर्न मैनेजमेंट, कोलकाता से प्रबंधन में डिप्लोमा प्राप्त किया। उन्होंने अपने कार्यजीवन का प्रारंभ पत्रकारिता से किया। विभिन्न बंगाली और अंग्रेज़ी पत्र-पत्रिकाअों के लिए लिखते रहे। बाद में उन्होंने विज्ञापन और विपणन की दुनिया का रूख किया। प्रेसमैन एडवर्टाइज़िंग के साथ प्रबंधक के रूप में कुछ वर्ष काम करने के बाद वे मेगमा के कार्पोरेट कम्युनिकेशन विभाग से जुड़ गये। सप्ताह के साक्षात्कार के अंतर्गत उनके साथ हुई बातचीत के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत हैं-

जरूरतमंद विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति देने की प्रक्रिया के दौरान किस तरह के विद्यार्थियों से अापकी मुलाक़ात हुई और उनको किस तरह की समस्याअों का सामना करना पड़ता है?

यूँ तो बहुत सारी घटनाएं हैं, लेकिन एक-दो ज़रूर बताना चाहूँगा। पूर्वी भारत में एक विद्यार्थी ने इंटर में 96 प्रतिशत अंक प्राप्त किये थे, वह मेडिकल की शिक्षा प्राप्त करना चाहता था, लेकिन घर में अाय का कोई स्त्रोत नहीं था। पिता अचानक बीमार हो गये थे और माँ को काम का कोई अनुभव नहीं था। इन परिस्थितियों में भी वह मेडिकल की शिक्षा प्राप्त करके अपने पिता का उपचार करना चाहता था। छात्रवृत्ति के कारण वह देश के एक अच्छे कॉलेज में प्रवेश पा सका है। कोलकाता की एक छात्रा को बारहवीं कक्षा में उसके अच्छे प्रदर्शन के कारण छात्रवृत्ति मिली, लेकिन उसने कुछ दिन बाद वह छात्रवृत्ति वापिस कर दी। कारण जानने पर अाश्चर्यचकित करने वाली घटना सामने अायी।

दरअसल वह मेडिकल की शिक्षा प्राप्त करना चाहती थी, लेकिन प्रवेश परीक्षा में उसके अंक अच्छे नहीं अाये थे और मजबूरन उसे इंजीनियरिंग में प्रवेश लेना पड़ा। कुछ दिन बाद उसे एहसास हुअा कि वह अपने लक्ष्य के साथ समझौता नहीं कर सकती और उसने इंजीनियरिंग की शिक्षा छोड़कर यह कहते हुए छात्रवृत्ति वापस कर दी कि वह अगले वर्ष मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी करेगी। मेगमा ने उसे इस तैयारी के लिए छात्रवृत्ति जारी रखी और इस वर्ष उसने मेडिकल कॉलेज में स्थान पा लिया है। उसकी छात्रवृत्ति जारी है।

पेंटिंग के क्षेत्र में विद्यार्थियों के चयन के क्या अनुभव रहे?

दरअसल पेंटिंग की शिक्षा या प्रशिक्षण बहुत ही महंगी प्रक्रिया है, क्योंकि यह बहुत खर्चीली कला है, अापको पेस्टल कलर ख़रीदने पड़ते हैं, कैन्वस काफी महंगा होता है, बहुत सारी और चीज़ें हैं, जो काफी महंगी होती है। घर में पेंटिंग करना अलग बात है, लेकिन अगर वह कैन्वस पर करता है तो काफी मेहनत भी लगती है और पैसा भी। इसलिए मैगमा ने हर साल दो नये कलाकारों को छात्रवृत्ति देना शुरू किया था।

जब मैं कोलकाता में था, तो कंपनी ने सीएसअार के तहत एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) को सहयोग करना शुरू किया था। यह संगठन अनोखा कार्य करता था। दिन में वे अपने-अपने कामों पर जाते थे और रात में चार-पांच एंबुलेंस लेकर शहर की अलग-अलग सड़कों पर घूमते थे, ताकि ज़रूरतमंदों को अस्पताल पहुंचाया जा सके और ग़रीब लोगों की मदद की जा सके। सीएसअार का मुख्य उद्देश्य भी यही है कि ऐसे लोगों की मदद करो, जिनको ज़रूरत तो है, लेकिन इस तरह की मदद की उम्मीद उन्होंने नहीं की हो।

गैर-सरकारी संगठनों का चयन करने में किस तरह की चुनौतियाँ सीएसअार में अाती हैं?

अधिकतर गैर-सरकारी संगठनों में कार्य के प्रति गंभीरता नहीं होती है। वे देखादेखी योजनाएं बनाकर निधियों के लिए अावेदन करते हैं। मैंने इसको महसूस करते हुए कुछ कड़े नियम बनाने की कोशिश की। सबसे पहले हमने एनजीओज़ को यह जताने की कोशिश की कि हमारे पास मुफ्त का पैसा नहीं रखा हुअा है। कर्मचारी दिन-रात मेहनत करते हैं, तब कहीं जाकर अाय होती है और उनके श्रम का हिस्सा निकालकर सामाजिक कार्यों को दिया जाता है।

इस प्रक्रिया में हमने कई बार परियोजनाअों का निरीक्षण करके नकारा भी है, इसलिए सही काम करने वाले एनजीओ को तलाश करना ही बड़ी चुनौती होती है।

क्या बात है कि अाज भी देश में गैर-सरकारी संगठन व्यवस्था जनता का विश्वास प्राप्त करने में नाकाम रही है?

इसका कारण साफ है कि कई नामी-गिरामी गैर-सरकारी संस्थाएँ भी अपने काम में गंभीर नहीं हैं। इसका एक उदाहरण देना चाहूँगा कि वर्षों से गैर- सरकारी संगठन काम कर रहे हैं, उन्हें निधियाँ भी जारी हो रही हैं, लेकिन देश को अाज भी खुले में शौचमुक्त नहीं बनाया जा सका है। हालाँकि स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत 3.20 करोड़ शौचालय बनाये गये हैं, लेकिन उनमें से कई का उपयोग नहीं हो पा रहा है और वहाँ पान की दुकानें खुल गयी हैं।

एक और जानकारी देना चाहूँगा कि 20 लाख गैर-सरकारी संगठन हैं और ग्राम हैं 6 लाख। यदि एक गैर-सरकारी संगठन एक गाँव को भी अपनाता तो ग्रामों की हालत बदल गयी होती।

क्या अापको लगता है कि सीएसअार से देश के हालात कुछ बदले हैं?

यह जानने के लिए कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों पर विचार करना होगा। सबसे पहले ज़रूरत अाधारित अाकलन करना होगा। उसमें स्थिति की वास्तविक जानकारी प्राप्त करनी होगी और उसके बाद यह तय करना होगा कि कोई भी निधि किसको और क्यों दी जा रही है। परियोजना सम्पन्न होने के बाद उसका प्रभाव क्या हुअा, इसका अध्ययन करना होता है। उसके 7 मानक हैं। हालाँकि काम बहुत हुअा है, लेकिन सारे कामों में समन्वय नहीं है।

देश की 3000 कंपनियाँ सीएसअार पर खर्चा करती हैं। टॉप 100 कंपनियाँ ही 7900 करोड़ रूपये खर्च करती हैं। शेष कंपनियों का जोड़ लेंगे, तो यह पंद्रह से बाrस हज़ार करोड़ रूपये तक जाएगा, लेकिन इस खर्च के लक्ष्य समन्वय नहीं है। यही कारण है कि बदलाव दिखाई नहीं देता।

छात्रवृत्ति के लिए विद्यार्थियों का चयन कैसे किया जाता है?
पहले तो यही कि उनका शैक्षणिक प्रदर्शन कैसा रहा है। जब अावेदनों की छंटाई होती है, तो हम उनकी जानकारी हमारे स्थानीय कर्मचारियों को भेजते हैं और व्यक्तिगत रूप से उस विद्यार्थी के घर पहुँचकर देखते हैं कि वे सचमुच में ज़रूरतमंद हैं या नहीं। दूसरा पक्ष यह होता है कि वे किस तरह की शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति चाहते हैं।

इससे पहले हमने लगभग 15 अादिवासी स्कूलों को अपनाया है और वहाँ अच्छा काम चल रहा है। इसके अलावा फाइन अार्ट्स के क्षेत्र में कार्यशालाअों का अायोजन कर नये कलाकारों को भी छात्रवृत्ति भी दी है।

एफ एम सलीम
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