अनुशासित होने में है धर्म: पारसमुनिजी

हैदराबाद, 5 जुलाई-(मिलाप ब्यूरो)
`धर्म अाराधना मानवता से होती है और अाराधना की पूर्णाहुति सिद्धित्व है। सिद्ध बनने के बाद किसी भी अाराधना की अावश्यकता नहीं रहती।'

उक्त विचार अाज यहाँ काचीगुड़ा जिनेश्वर धाम में अायोजित धर्मसभा में श्री चम्पकगच्छ तपस्वीराज पारसमुनिजी म.सा. ने व्यक्त किये। प्रचार संयोजक मनोज कोठारी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, म.सा. ने कहा कि धर्म अाराधना में अात्मानुशासन अावश्यक है। देह का अनुशासन कोई-कोई कर लेता है, परंतु अात्मानुशासन नहीं, तो धर्म नहीं। प्रथम तो हमारी परिणति कैसी है, जीवन की चर्या कैसी है, इसका निर्णय करना अावश्यक है। अात्मानुशासन जहाँ है, वहाँ दुःख नहीं हो सकता। वहाँ तो सुख ही सुख है। अनुसाशन करने से नहीं होता है। जो कराया गया वह अनुशासन नहीं, बाल्कि अादेश माना जाता है। अनुशासन करने में नहीं, किन्तु जो अनुशासित हो जाए, वही अनुशासन है। गुरू का जीवन ऐसा हो कि शिष्य पर अनुशासन न करते हुए अनुशासित हो जाए। उनका शरण स्वीकार कर ले। अनुशासन में कषाय है और अनुशासितपने में गुणानुराग और गुणानुरागपने से भक्ति जागती है। जब तुम किसी का विरोध करोगे, तो वह विरोधी अपने वाला हो नहीं सकता है।

म.सा. ने कहा कि हमारा धर्म प्राणीजनों की रक्षा का है। जैसे हम हमारे शरीर की, परिवार की, घर की, दुकान की रक्षा करने से पीछे नहीं हटते, उसी तरह अात्मा के गुण की रक्षा करने में कईयों को जोड़ लिया है। उसमें से उबरने में ही अपनत्व है। हमारा हिंसा धर्म अन्य की रक्षा ही स्वयं के अात्मा की रक्षा स्थित होती। साधु गोचरी में अाए उसमें किसी पानी वनस्तपति को टच कर लिया, तो साधु अाहार नहीं लेगा। उसके लिए बनाया, लेकिन साधु लेता नहीं। इसका कारण यह है हमारे निमित्त किसी को दुःख हुअा, वह भोजन हम नहीं लेते, इसीलिए तो साधु भीक्षा लेते नहीं हैं। अत मैत्री भाव प्रमोदभाव, करूणाभाव, मध्यस्थ भाव इन भावों की भक्ति होना भावना है। मैत्री भाव में अपनत्व और यह अपनत्व जरा किसी प्रकार का दुःख होता नहीं है। अशुभ भावना दुखकारी पापबंधक और अधर्म है। शुभभाव पुण्य रूप है और शुद्ध भाव धर्म रूप संवर निर्जरा रूप है। 

`जोड़ेंगे तो ही परमात्मा से जुड़ेगे'
अवसर पर पंजाब के संत उपप्रवर्तक पंकजमुनिजी के शिष्य वरूणमुनिजी ने कहा कि अाज मानव, मानव को तोड़ रहा है। वास्तव में मानव से मानव को जोड़ना होगा। मानव को मानव से जोड़ने के लिए मानवता, करूणा, दया, प्रेम होना जरूरी है। संप्रदायवाद, जातिवाद, वंशवाद दिखाने वाले जोड़ते नहीं, तोड़ते हैं। धर्म के नाम पर समाज, परिवार टूट रहे हैं। जोड़ेंगे तो ही परमात्मा से जुड़ेगे। प्रवचन के पश्चात हितेशभाई संघवी ने बताया कि शुक्रवार, 6 जुलाई को जिनेश्वरधाम धर्म स्थानक, काचीगुड़ा में प्रवचन होगा।
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