स्वावलंबी और निर्भीक होते हैं धर्मी लोग : पारसमुनिजी

हैदराबाद, 4 जुलाई-(चन्द्रभान अार.)
`संसार में मनुष्य दो रूपों में जी रहा है-कर्म और धर्म रूप में। कर्म में जीवन की भौतिकता से उद्गल इन्द्रिय विषयों से जीवन जिया जाता है। धर्म पर चलने वाले स्वावलंबी और निर्भीक होते हैं।'

अाज यहाँ प्रचार संयोजक मनोज कोठारी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, ईडनबाग स्थित रूक्मिणी अपार्टमेंट में अायोजित धर्मसभा में तपस्वीराज पारसमुनिजी म.सा. ने उक्त उद्ग़ार व्यक्त किए।

प्रवचन को अागे बढ़ाते हुए पारसमुनिजी ने कहा कि कर्म से जीवन जीने वाले अजीव लक्षी होते हैं। वे पर लक्षी और पर में आकर्षण से ग्रसित होते हैं। कर्म से जीवन परतंत्र होता है। हम देह, परिवार और भौतिक साधनों के भक्त होते हैं। ऐसे लोग यही मानते हैं कि देह, परिवार और साधन के बिना जीवन यापन कठिन कार्य है। वे लोग गुलाम की तरह जीवन व्यतीत करते हैं। कोई व्यक्ति कैसे किसी का गुलाम हो सकता है, जबकि उसके पास बुद्धि, विचार, शक्ति हो और वह क्रियाशील भी हो। सब कुछ होते हुए भी कर्म रूप में जीवन जीने वाले लोग दूसरों के इशारों पर उनकी ही बुद्धि से कार्य करते हैं।
मुनिश्री ने अागे कहा कि बुद्धि, विचार होने पर भी ऐसे लोग उसका उपयोग नहीं कर सकते हैं। कर्म से भक्ति करने वाले अाहार, भय, मैथुन रूपी परिग्रह संज्ञा प्रधान होते हैं। वे लोग धर्म करने में, अात्म अाराधना करने में खुद को असमर्थ मानते हैं, क्योंकि उनके अंतर में भय होता है। भय के कारण वे अात्म अनुशासन को नकारते हुए कर्म के अनुशासन में रहते हैं। जहाँ भय है, वहाँ धर्म नहीं हो सकता। भय अंतर की भावना को तोड़ देता है। भयभीत व्यक्ति पलायनवादी होते हैं। वे स्वयं अपनी रक्षा करने में असमर्थ होते हैं।

पारसमुनिजी ने कहा कि सच्चे, धर्मी लोगों को किसी भी चीज का भय नहीं सताता है, क्योंकि वे भगवान और गुरू के प्रति श्रद्धा रखते हैं। जिसने भगवान का हाथ थाम लिया, उसे किसी का डर नहीं रहता। अाज हम लोग तप, संयम अादि डर कर नहीं करते हैं, क्योंकि हमने भगवान की पूर्ण शरण नहीं ली है। सच्चे धर्मी सोचते हैं कि भगवान उनके भीतर हैं। अब मुझे न कर्म का भय है और न किसी अन्य का। जैसे सुदर्शन सेठ फाँसी पर चढ़ाये जाने पर भी भयभीत नहीं थे, इसलिए फाँसी भी उनके लिए सिंहासन हो गयी। इसके अलावा सभी सुदर्शन के वश में हो गये, क्योंकि वे भगवान की शरण में थे। भगवान की शरण ही व्यक्ति को धर्मी बनाती है और धर्मी की सेवा देव भी करते हैं। धर्मी लोग देह, परिवार, साधनों के भक्त नहीं होते हैं। वे स्वावलंबी और निर्भय होते हैं।

अवसर पर भरतभाई पटेल ने कहा कि हम सब गुरूदेव के शरण में आकर निर्भय होकर धर्म अाराधना करें। अब जागने का समय अा गया है। प्रवचन के बाद अल्पाहार की व्यवस्था राजेश सुराणा परिवार की ओर से की गयी। मुनिश्री का गुरूवार, 5 जुलाई का प्रवचन काचीगुड़ा स्थित जिनेश्वर धाम में होगा। श्रावकों से अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होकर म.सा. के दर्शन-वंदन और प्रवचन का लाभ लेने का अाग्रह किया गया है।
 
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