कयामत की ओर बढ़ते कदम

जैसे कोई नशेड़ी किसी नशे की लत में अपनी सारी संपत्ति लुटा बैठता है, वैसे ही हम मौज-मस्ती के नशे में चूर होकर हवा-पानी की अमूल्य दौलत गँवाते जा रहे हैं और अपनी संततियों को अंधेरे कुएँ की ओर धकेलते जा रहे हैं।

अस्सी साल का एक वृद्ध अचानक बीमार हुअा, तो उसके दोस्त ने उसे अस्पताल में भर्ती करवा दिया। डॉक्टरों ने उसे अाईसीयू में लिटा दिया और अॉक्सीजन चढ़ा दी। ठीक होने पर जब उसने बिल हाथ में पकड़ा, तो चार हजार का खर्चा देखकर हक्का-बक्का रह गया।

हिम्मत करके उसने डॉक्टर से पूछा, `इतना बिल किस बात का?' तो जवाब मिला कि- दो दिनों से उसे अॉक्सीजन चढ़ाई जा रही है, चार हजार का बिल तो अाना ही था।
वृद्ध ने दहाड़ें मार कर रोना शुरू कर दिया, तो दिलासा देते हुए डॉक्टर बोला, `घबराओ मत, अगर तुम्हारे पास इतने पैसे नहीं हैं तो किश्तों में दे देना।' वृद्ध अपने अाँसुअों पर नियंत्रण करते हुए बोला, `डॉक्टर सा'ब! बात चार हजार रूपये की नहीं है, यह राशि तो मैं इसी वक्त चुकता कर सकता हूँ। दरअसल, मैं यह सोचकर घबरा रहा हूँ कि पिछले अस्सी सालों से मैं जो मुफ्त में लगातार अॉक्सीजन खींच रहा हूँ, यदि उसका बिल कभी देना पड़ गया तो मेरे तो छक्के छूट जायेंगे।'

वृद्ध अादमी की दलील सुनकर डॉक्टर ने भी उसकी हाँ में हाँ मिलायी और सोच में पड़ गया।

जिंदगी ना तो किस्सा है ना ही किश्त। पर फिर भी रोज़ाना ऐसे कितने ही किस्से सुनने में अा रहे हैं कि लगता है अादमी किश्तों में जी रहा है पर अपने हिस्से की किश्त का भुगतान करने को अादमी अभी तक तैयार नहीं है। कुदरत पर हमारे पेट भरने की ज़िम्मेदारी जरूर है पर पेटियाँ भरने की नहीं। हम दोनों हाथों से कुदरत को लूटने पर लगे हैं।

पहाड़, नदियाँ, जंगल सब कुछ हमने निगल लिये हैं। वन्य-जीवों तक को हमने नहीं छोड़ा। अादमी ने पूरी ज़मीन खंगाल दी और अासमान निचोड़ दिया। अब हमारी करतूतों का फल हमारे सामने सात भांत की बीमारी बनकर अा रहा है, पर हम बेसुध और बेपरवाह हैं।

जो चीज़ हमें प्रकृति से बिल्कुल निःशुल्क मिल रही है, वह जीवन के लिए उतनी ही जरूरी है। पर सच्चाई यह है कि मुफ्त की वस्तु की कीमत हम नहीं पहचान पाते। हवा-पानी के बिना सारे महल-चौबारे, कार-कोठियाँ और धन-दौलत अादि मौत की गुफाएँ हैं। यही एक बात हम सिरे से भूलते जा रहे हैं कि हवा-पानी के सहारे ही सारी सृष्टि गुलज़ार है, वरना समूची कायनात में कयामत अाते वक्त नहीं लगेगा।

जैसे कोई नशेड़ी किसी नशे की लत में अपनी सारी संपत्ति लुटा बैठता है, वैसे ही हम मौज-मस्ती के नशे में चूर होकर हवा-पानी की अमूल्य दौलत गँवाते जा रहे हैं और अपनी संततियों को अंधेरे कुएँ की ओर धकेलते जा रहे हैं।

0 0 0 0

एक बर की बात है; अक रामप्यारी अपणे ढब्बी तैं बोल्ली, `या बात तो मानणी ए पड़ैगी, अक दिल टूटण पै सबतै घणा दुख होवै है।' नत्थू दीद्दे काढ़ते होये बोल्या, `तेरे सिर मैं नहाते टैम कदे टूंटी लाग्गी है के?'

-शमीम शर्मा
Comments System WIDGET PACK