निरंकुशता और अराजकता के लिए जगह नहीं : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली, 4 जुलाई-(भाषा)
दिल्ली सरकार एवं केंद्र के बीच सत्ता की रस्साकशी पर एक ऐतिहासिक पैसले में उच्चतम न्यायालय ने अाज कहा कि उप-राज्यपाल अनिल बैजल को स्वतंत्र पैसला लेने का अधिकार नहीं है और उन्हें मंत्रिपरिषद की मदद और सलाह पर काम करना होगा।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली उच्चतम न्यायालय के पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह पैसला सुनाते हुए कहा कि उप-राज्यपाल अवरोधक के तौर पर कार्य नहीं कर सकते हैं। दो अन्य न्यायाधीशों न्यायमूर्ति ए. के. सीकरी एवं न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर ने इस पैसले पर सहमति जतायी। इसने कहा कि मंत्रिपरिषद के सभी पैसले से उप-राज्यपाल को निश्चित रूप से अवगत कराया जाना चाहिए, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि इसमें उप-राज्यपाल की सहमति अावश्यक है।
अदालत ने अपने पैसले में कहा, ना तो निरंवुशता के लिये और ना ही अराजकता के लिये कोई जगह है। यह पैसला दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिये एक बड़ी जीत है। मुख्यमंत्री एवं उप-राज्यपाल अनिल बैजल के बीच लगातार सत्ता की रस्साकशी देखी गयी है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जमीन और कानून-व्यवस्था सहित तीन मुद्दों को छोड़कर दिल्ली सरकार के पास अन्य विषयों पर कानून बनाने एवं शासन करने का अधिकार है। केजरीवाल सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय के अादेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में कई याचिका दायर की थी। इस पर न्यायालय का यह पैसला सामने अाया है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने पैसले में उप-राज्यपाल को राष्ट्रीय राजधानी का प्रशासनिक प्रमुख बताया था। उच्च न्यायालय के अादेश के बिल्वुल उलट उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उप-राज्यपाल को यांत्रिक तरीके से कार्य नहीं करना चाहिए और ना ही उन्हें मंत्रिपरिषद के पैसलों को रोकना चाहिए। उसने कहा कि उप-राज्यपाल को स्वतंत्र अधिकार नहीं सौंपे गये हैं और वह सामान्य तौर पर नहीं बल्कि सिर्फ अपवाद मामलों में मतभेद वाले मुद्दों को ही राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि उप-राज्यपाल को मंत्रिपरिषद के साथ सौहार्दपूर्ण तरीके से काम करना चाहिए और मतभेदों को विचार-विमर्श के साथ सुलझाने का प्रयास करना चाहिए।
नई दिल्ली, 4 जुलाई-(भाषा)
दिल्ली सरकार एवं केंद्र के बीच सत्ता की रस्साकशी पर एक ऐतिहासिक पैसले में उच्चतम न्यायालय ने अाज कहा कि उप-राज्यपाल अनिल बैजल को स्वतंत्र पैसला लेने का अधिकार नहीं है और उन्हें मंत्रिपरिषद की मदद और सलाह पर काम करना होगा।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली उच्चतम न्यायालय के पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह पैसला सुनाते हुए कहा कि उप-राज्यपाल अवरोधक के तौर पर कार्य नहीं कर सकते हैं। दो अन्य न्यायाधीशों न्यायमूर्ति ए. के. सीकरी एवं न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर ने इस पैसले पर सहमति जतायी। इसने कहा कि मंत्रिपरिषद के सभी पैसले से उप-राज्यपाल को निश्चित रूप से अवगत कराया जाना चाहिए, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि इसमें उप-राज्यपाल की सहमति अावश्यक है।
अदालत ने अपने पैसले में कहा, ना तो निरंवुशता के लिये और ना ही अराजकता के लिये कोई जगह है। यह पैसला दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिये एक बड़ी जीत है। मुख्यमंत्री एवं उप-राज्यपाल अनिल बैजल के बीच लगातार सत्ता की रस्साकशी देखी गयी है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जमीन और कानून-व्यवस्था सहित तीन मुद्दों को छोड़कर दिल्ली सरकार के पास अन्य विषयों पर कानून बनाने एवं शासन करने का अधिकार है। केजरीवाल सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय के अादेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में कई याचिका दायर की थी। इस पर न्यायालय का यह पैसला सामने अाया है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने पैसले में उप-राज्यपाल को राष्ट्रीय राजधानी का प्रशासनिक प्रमुख बताया था। उच्च न्यायालय के अादेश के बिल्वुल उलट उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उप-राज्यपाल को यांत्रिक तरीके से कार्य नहीं करना चाहिए और ना ही उन्हें मंत्रिपरिषद के पैसलों को रोकना चाहिए। उसने कहा कि उप-राज्यपाल को स्वतंत्र अधिकार नहीं सौंपे गये हैं और वह सामान्य तौर पर नहीं बल्कि सिर्फ अपवाद मामलों में मतभेद वाले मुद्दों को ही राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि उप-राज्यपाल को मंत्रिपरिषद के साथ सौहार्दपूर्ण तरीके से काम करना चाहिए और मतभेदों को विचार-विमर्श के साथ सुलझाने का प्रयास करना चाहिए।