हैदराबाद, 3 अक्तूबर (चन्द्रभान अार.)
`जिस जगह पर कथा होती है, वहाँ भक्ति का प्रदर्शन होता है। अन्य जगहों पर शक्ति का प्रदर्शन यानि दिखावा होता है। भागवत कथा के श्रवण करने के लिए जीव को अपने विकारों को बाहर छोड़कर अाना होगा।'
उक्त उद्गार सिद्दिअंबर बाजार स्थित बाहेती भवन में राजस्थानी जागृति समिति द्वारा अायोजित श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस कथा का महत्व बताते हुए अाचार्य सचिन कौशिक ने व्यक्त किये। अाचार्य सचिन कौशिक ने कहा कि भागवत कथा जहाँ होती है, वहाँ पर भक्ति का संचार होता है। इसलिए जहाँ भी कथा होती है, वहाँ जाने के लिए समय अवश्य निकालें। भक्त जैसे ही भागवत का नाम लेता है, वैसे ही उसके ह्दय में प्रभु विराजमान हो जाते हैं। जहाँ कथा होती है, वह स्थान शुद्ध होता है और भक्त अपने जूते बाहर उतारकर अाता है। इसी तरह जीव जब कथा का श्रवण करने अाये, तो मन के सारे विकार छोड़कर अाये। शुद्ध निर्मल मन से श्रवण की गयी कथा जीव को पूर्ण फल प्रदान करती है।
अाचार्य सचिन कौशिक ने कहा कि भागवत महापुराण भगवान के भक्त की कथा है। भगवान भक्त के अधीन हैं। भक्त, गोमाता, ब्राह्मण ने धर्म की रक्षा हेतु कई रूपों में अवतार लिया है। भगवान को हर समय श्रद्धा के साथ स्मरण करें। बच्चों को यह संस्कार बचपन से ही डालें, ताकि बड़े होकर वह भक्ति के मार्ग पर चले और सदाचारी जीवन जिए। उन्होंने कहा कि व्यक्ति का सच्चा धन सत्संग है, वह सभी का कल्याण करता है। जीवन में सत्संग की अादत डालें। कौशिकजी ने कहा कि भागवत को सुनने के कुछ विधान हैं, जिनका पालन अवश्य करें। महर्षि वेदव्यास ने 17 पुराणों की रचना की, लेकिन फिर भी वे संतुष्ट नहीं थे। नारदमुनिजी ने उनके दुःख का कारण पूछा, तो महर्षि ने कहा कि लोग धर्म से विमुख होते जा रहे हैं। धर्म को लेकर काफी चिंता हो रही है, क्योंकि जब तक संसार में धर्म रहेगा, तब तक समाज को सही दिशा मिलेगी। धर्म की कमी नहीं है, पर संसार के लोगों के ह्दय में धर्म नहीं है। कौशिकजी ने कहा कि सच्चा संत वही है, जिसे समाज की चिंता होती है। जब समाज दुःखी होता है, तो संत दुःखी होते हैं। महर्षि वेदव्यास ने जगत कल्याण के लिए ही श्रीमद् भागवत कथा की रचना की।
अवसर पर मुख्य अतिथि तेरास नेता नंदकिशोर व्यास `बिलाल', जैनरत्न प्रसन्नचंद भंडारी, सरोज भंडारी, नारायणलाल बाहेती, विजयलक्ष्मी काबरा व अन्य का सम्मान अाचार्य सचिन कौशिक ने किया। अतिथियों ने समिति द्वारा पितृपक्ष के अवसर पर अायोजित कथा के लिए राजस्थानी जागृति समिति के अध्यक्ष श्रीनिवास सोमानी की प्रशंसा की। कथा में सभी का स्वागत श्रीनिवास सोमानी और अाशा देवी सोमानी ने किया।
कथा में मंत्री अशोक हीरावत, उपाध्यक्ष प्रेमचन्द मुणोत, महेश हर्ष, कोषाध्यक्ष संजय राठी, सह-मंत्री रामदेव नागला, कमलनयन बजाज, सदस्य जयप्रकाश लड्डा, बालाप्रसाद लड्डा, मीना सारड़ा, हेमलता शर्म, रतनलाल सोमानी, बालाप्रसाद मोदानी, गोविन्द बिरादर, प्रभु व्यास, सुरेश तिवारी, रमेश तोष्णीवाल, राकेश भारती व अन्य ने सहयोग प्रदान किया।
`जिस जगह पर कथा होती है, वहाँ भक्ति का प्रदर्शन होता है। अन्य जगहों पर शक्ति का प्रदर्शन यानि दिखावा होता है। भागवत कथा के श्रवण करने के लिए जीव को अपने विकारों को बाहर छोड़कर अाना होगा।'
उक्त उद्गार सिद्दिअंबर बाजार स्थित बाहेती भवन में राजस्थानी जागृति समिति द्वारा अायोजित श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस कथा का महत्व बताते हुए अाचार्य सचिन कौशिक ने व्यक्त किये। अाचार्य सचिन कौशिक ने कहा कि भागवत कथा जहाँ होती है, वहाँ पर भक्ति का संचार होता है। इसलिए जहाँ भी कथा होती है, वहाँ जाने के लिए समय अवश्य निकालें। भक्त जैसे ही भागवत का नाम लेता है, वैसे ही उसके ह्दय में प्रभु विराजमान हो जाते हैं। जहाँ कथा होती है, वह स्थान शुद्ध होता है और भक्त अपने जूते बाहर उतारकर अाता है। इसी तरह जीव जब कथा का श्रवण करने अाये, तो मन के सारे विकार छोड़कर अाये। शुद्ध निर्मल मन से श्रवण की गयी कथा जीव को पूर्ण फल प्रदान करती है।
अाचार्य सचिन कौशिक ने कहा कि भागवत महापुराण भगवान के भक्त की कथा है। भगवान भक्त के अधीन हैं। भक्त, गोमाता, ब्राह्मण ने धर्म की रक्षा हेतु कई रूपों में अवतार लिया है। भगवान को हर समय श्रद्धा के साथ स्मरण करें। बच्चों को यह संस्कार बचपन से ही डालें, ताकि बड़े होकर वह भक्ति के मार्ग पर चले और सदाचारी जीवन जिए। उन्होंने कहा कि व्यक्ति का सच्चा धन सत्संग है, वह सभी का कल्याण करता है। जीवन में सत्संग की अादत डालें। कौशिकजी ने कहा कि भागवत को सुनने के कुछ विधान हैं, जिनका पालन अवश्य करें। महर्षि वेदव्यास ने 17 पुराणों की रचना की, लेकिन फिर भी वे संतुष्ट नहीं थे। नारदमुनिजी ने उनके दुःख का कारण पूछा, तो महर्षि ने कहा कि लोग धर्म से विमुख होते जा रहे हैं। धर्म को लेकर काफी चिंता हो रही है, क्योंकि जब तक संसार में धर्म रहेगा, तब तक समाज को सही दिशा मिलेगी। धर्म की कमी नहीं है, पर संसार के लोगों के ह्दय में धर्म नहीं है। कौशिकजी ने कहा कि सच्चा संत वही है, जिसे समाज की चिंता होती है। जब समाज दुःखी होता है, तो संत दुःखी होते हैं। महर्षि वेदव्यास ने जगत कल्याण के लिए ही श्रीमद् भागवत कथा की रचना की।
अवसर पर मुख्य अतिथि तेरास नेता नंदकिशोर व्यास `बिलाल', जैनरत्न प्रसन्नचंद भंडारी, सरोज भंडारी, नारायणलाल बाहेती, विजयलक्ष्मी काबरा व अन्य का सम्मान अाचार्य सचिन कौशिक ने किया। अतिथियों ने समिति द्वारा पितृपक्ष के अवसर पर अायोजित कथा के लिए राजस्थानी जागृति समिति के अध्यक्ष श्रीनिवास सोमानी की प्रशंसा की। कथा में सभी का स्वागत श्रीनिवास सोमानी और अाशा देवी सोमानी ने किया।
कथा में मंत्री अशोक हीरावत, उपाध्यक्ष प्रेमचन्द मुणोत, महेश हर्ष, कोषाध्यक्ष संजय राठी, सह-मंत्री रामदेव नागला, कमलनयन बजाज, सदस्य जयप्रकाश लड्डा, बालाप्रसाद लड्डा, मीना सारड़ा, हेमलता शर्म, रतनलाल सोमानी, बालाप्रसाद मोदानी, गोविन्द बिरादर, प्रभु व्यास, सुरेश तिवारी, रमेश तोष्णीवाल, राकेश भारती व अन्य ने सहयोग प्रदान किया।