`पाप मुक्ति से मिलता है सुख'

हैदराबाद, 30 जून-(चन्द्रभान अार.)
`अाज मानव अनेक रूप से दुखों का समाना कर रहा है। दुखों से मुक्त होने के लिए किये जा रहे प्रयास सफल नहीं हो रहे हैं। यदि सुख प्राप्त करना है, तो पाप से मुक्त होना होगा।' अाज यहाँ प्रचार संयोजक मनोज कोठारी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, हनुमान टेकड़ी स्थित लुणिया धर्मशाला में अायोजित प्रवचन सभा में तपस्वीराज पारसमुनिजी म.सा. ने उक्त उद्ग़ार दिये।

मुनिश्री ने प्रवचन को अागे बढ़ाते हुए कहा कि मानव के जीवन में पाँच रूप से दुख अा रहे हैं- मन, वचन, काया, साधन और अात्मा द्वारा। अब किसी ने कुछ कह दिया और अापके विचारों के विरूद्ध कर दिया, तो मन ही मन दुख होता है। कितनी ही ऐसी बातें होती हैं, जो सही रूप से कही नहीं जातीं। मन का दुख चिंता में रहने और वचन का दुख अपमान सहने से होता है। काया का दुःख रोग बीमारी अाने, कार्य करने की क्षमता नष्ट हो जाने से होता है। साधना का दुख खाने-पीने को न मिलने, मकान-गहने अादि का अभाव होने से होता है। अात्मा का स्वभाव क्षमा है। क्रोध से क्षमा का नाश होता है। क्रोध से स्वयं तो दुखी होते ही हैं, अन्यों को भी दुःखी बनाते हैं।

म.सा. ने अागे कहा कि दुख अाता है, पाप से। पाप स्वयं के विरूद्ध की प्रवृत्ति है। व्यक्ति बुरा बनता है पाप से। उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। भ्रष्ट बुद्धि अनेक विपरीत प्रवृत्तियाँ उत्पन्न करती है। दुःख देने वाला अन्य कोई नहीं है। अपने स्वभाव से व्यक्ति दुखी होता है और अपने स्वभाव से सुखी रहता है। पारसमुनिजी का रविवार, 1 जुलाई का प्रवचन सुबह 9.15 से 10.15 बजे तक शालीमार टॉकिज बुक कलेक्शन में जयंत भाई पारेख के यहाँ रहेगा। तरूण भाई पारेख और अजय भाई पारेख ने सभी से प्रवचन एवं दोपहर 2 से 2.30 बजे तक अायोजित किये जाने वाले धार्मिक शिविर में भाग लेने का अाग्रह किया है।


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