इस व्यापार युद्ध से नष्ट हो सकती है दुनिया


यह ठीक है कि अमेरिका भारी व्यापार घाटे में है और उसकी अर्थव्यवस्था भी घाटे की अर्थव्यवस्था बन गई है। किंतु वही एक समय दुनिया में खुले और मुक्त व्यापार का झंडाबरदार बना हुअा था। यही मुक्त व्यापार व्यवस्था उसके गले की हड्डी क्यों बन रही है? क्यों वह अपने ही मुक्त बाजार की विश्व व्यवस्था से पीछे हट रहा है? इस व्यवस्था में संरक्षणवादी और अायात शुल्कों का हमला कतई निदान नहीं हो सकता। यह व्यापार युद्ध अागे बढ़ते हुए कई प्रकार के अन्य तनावों में परिणत हो सकता है। इससे दुनिया को बचाना जरूरी है।

दुनिया में व्यापार युद्ध छिड़ गया है। स्थिति कितनी गंभीर हो रही है, इसका अनुमान इसी से लगाइए कि अमेरिका और चीन के बीच अायात शुल्कों से अारंभ यह युद्ध अब भारत, यूरोपीय संघ, तुर्की, कनाडा, अॉस्ट्रेलिया, जापान और मैक्सिको तक विस्तारित हो गया है। इसमें दुनिया भर के केन्द्रीय बैंक एवं प्रमुख संस्थाएँ भारी अार्थिक मंदी के खतरे की भविष्यवाणी कर रही हैं।

अमेरिका के फेडरल रिजर्व, यूरोपीयन सेंट्रल बैंक, जापान, अॉस्ट्रेलिया, इंगलैंड के बैंक प्रमुखों ने कहा है कि पूरी स्थिति वैश्विक व्यापार युद्ध की शक्ल अख्तियार कर रही है। इनके अनुसार, यदि इनको रोका नहीं गया तो यह 2008 से भी भयानक मंदी पैदा कर सकता है। एक-दूसरे के सामानों की अावाजाही को शुल्कों से बाधित करने के कारण व्यापारिक माहौल बिगड़ेगा। इसके दुष्परिणाम बहुअायामी होंगे, जिनमें विकास दर में गिरावट शामिल है।

वास्तव में `अमेरिका फर्स्ट' का नारा देने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संरक्षणवादी नीतियों और व्यापार शुल्क को हथियार के तौर पर जिस तरह उपयोग करना अारंभ किया है, उसका परिणाम यही होना है। अमेरिका ने पिछले सप्ताह चीन के 50 अरब डॉलर के सामानों पर 25 प्रतिशत शुल्क लगा दिया था। इसके जवाब में चीन ने भी अमेरिका के 50 अरब डॉलर के 659 उत्पादों पर शुल्क लगा दिया।

ट्रंप ने चीन को परोक्ष रूप से धमकी दी थी कि वह 200 अरब डॉलर के अतिरिक्त चीनी सामानों पर शुल्क लगाएगा। चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने कहा कि ऐसा हुअा तो चीन भी इसके जवाब में कदम उठाएगा। ट्रंप के रवैये को देखते हुए, चीन से अायात किए जाने वाले 450 अरब डॉलर के उत्पादों पर शुल्क लगाए जाने की अाशंकाएँ बढ़ गईं हैं।

अागे चर्चा करने तथा अन्य देशों का उल्लेख करने से पहले भारत पर अाते हैं। अमेरिका ने मार्च महीने में भारत से अायातित इस्पात पर 25 प्रतिशत और अल्युमीनियम पर 10 प्रतिशत शुल्क लगा दिया था। इसके जवाब में अब भारत ने अमेरिका से अाने वाले 29 वस्तुअों पर अायात शुल्क बढ़ा दिया। भारत बातचीत के जरिए मसले को सुलझाना चाहता था।

जून के दूसरे सप्ताह में वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु अमेरिका दौरे पर गए थे। प्रभु की अमेरिका के वाणिज्य मंत्री विल्बर रॉस और अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि रॉबर्ट लाइटहाइजर के साथ हुई बैठकों के दौरान विवाद को बातचीत से सुलझाने का निर्णय करने की घोषणा की गई थी। इसके पूर्व मई में भारत ने विश्व व्यापार संगठन के विवाद निपटान में भी मामला दायर किया। हालाँकि मामला दायर करने के बावजूद भारत का मत यही था कि हम पहले बातचीत करेंगे और नहीं सुलझा तो विवाद निपटान ईकाई से इसका निर्णय देने के लिए कहेंगे। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा के क्यूबेक में अायोजित जी-7 के बैठक में भारत समेत दुनिया भर की शीर्ष अर्थव्यवस्थाअों पर तीखा हमला किया। उन्होंने भारत पर कुछ अमेरिकी उत्पादों पर 100 प्रतिशत का शुल्क लगाने का अारोप लगाया। उसके बाद भारत ने यह कदम उठाया।

वास्तव में क्यूबेक के भाषण में ट्रंप ने पूरी दुनिया को निशाना बनाते हुए, अपने रवैये पर कायम रहने का सीधा संदेश दिया था। उन्होंने भारत सहित दुनिया की कुछ प्रमुख अर्थव्यवस्थाअों पर अमेरिका को व्यापार में लूटने का अारोप लगाया। उन्होंने कहा कि `हम तो ऐसे गुल्लक हैं, जिसे हर कोई लूट रहा है'। ट्रंप ने कहा कि भारत में विशेष रूप से हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिलों पर ऊंचा शुल्क लगाए जाने का मुद्दा कई बार उठा चुके हैं। ट्रंप ने सम्मेलन के संयुक्त घोषणा पत्र के पाठ को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि `हम सभी देशों से बात कर रहे हैं। यह रूकेगा या फिर हम उनसे कारोबार करना बंद करेंगे'।

जी 7 के नेताअों ने उन्होंने मनाने की पूरी कोशिश की, लेकिन वे असफल रहे। उसके बाद सबको कुछ न कुछ जवाबाr कदम उठाना था। भारत ने संकेत समझ लिया, इसलिए उसने प्रतीक्षा नहीं की। यूरोपीय संघ ने अमेरिका के बोर्बोन, जींस, व्हिस्की, चावल और मोटरसाइकिल सहित कई उत्पादों पर 3.3 अरब डॉलर का शुल्क लगाया है। अमेरिका ने वहाँ के इस्पात एवं अल्यूमीनियम पर 25 प्रतिशत और 10 प्रतिशत शुल्क लगाने की घोषणा कर दी है। ट्रंप ने कहा है कि `इस शुल्क को यूरोपीय संघ हटाए, अन्यथा हम वहाँ से अाने वाली कारों पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाएंगे।' जापान की कारों व कई सामग्रियों पर भी उन्होंने शुल्क लगाने की चेतावनी दे दी है। तुर्की ने भी अमेरिका से अायातित वस्तुअों पर 267 मिलियन डॉलर मूल्य का अायात शुल्क लगाने की घोषणा कर दी है।

तत्काल शुल्क बनाम प्रतिशुल्क का यह वार रूकने की स्थिति में नहीं है। अागे कुछ भी हो सकता है, जैसे चीन कई तरीकों से बदला ले सकता है। अाईफोन एक्स, एक्सेल कार, स्टारबक्स और टॉम क्रूज की फिल्में अादि की माँग चीन में है। इन सब पर चीन प्रतिबंध लगा सकता है। उत्तर कोरिया के साथ अमेरिका के कूटनीतिक संबंध कायम करवाने के अपने प्रयास को चीन रोक सकता है। चीन ने पिछले महीने कहा था कि उसने अमेरिका से अायातित पोर्क और अॉटोमोबाइल्स की जाँच शुरू कर दी है, जिसके बाद ये उत्पाद बंदरगाहों पर ही रहे।

चीन और अमेरिका दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ हैं। इस व्यापार युद्ध ने वैश्विक कंपनियों के बीच भरोसे को घटाया है और वैश्विक अर्थव्यवस्था खतरे की ओर जा रही है। अॉटोमोबाइल कंपनियाँ इसका शिकार होती दिख रहीं हैं। मर्सेडीज-बेंज बनाने वाली जर्मनी की अॉटोमोबाइल कंपनी डेमलर एजी ने 2018 के अपने लाभ के पूर्वानुमान को घटा दिया है। जनरल मोटर्स और फोर्ड के शेयर जहाँ 1 प्रतिशत गिरे हैं, वहीं टेस्ला के शेयरों में भी 0.5 प्रतिशत की गिरावट हुई है। बीएमडब्ल्यू ने भी कहा है कि इसकी वजह से उसे रणनीतिक उपायों की तलाश करनी पड़ रही है। डेमलर एजी ने कहा है कि उसकी कारों पर चीन द्वारा अायात शुल्क बढ़ा देने से चीन के ग्राहकों की माँग में कमी अाएगी। उसे इस साल कम फायदा होगा।

यह ठीक है कि अमेरिका भारी व्यापार घाटे में है और उसकी अर्थव्यवस्था भी घाटे की अर्थव्यवस्था बन गई है। किंतु वही एक समय दुनिया में खुले और मुक्त व्यापार का झंडाबरदार बना हुअा था। यही मुक्त व्यापार व्यवस्था उसके गले की हड्डी क्यों बन रही है? क्यों वह अपने ही मुक्त बाजार की विश्व व्यवस्था से पीछे हट रहा है? इस व्यवस्था में संरक्षणवादी और अायात शुल्कों का हमला कतई निदान नहीं हो सकता। यह व्यापार युद्ध अागे बढ़ते हुए कई प्रकार के अन्य तनावों में परिणत हो सकता है। इससे दुनिया को बचाना जरूरी है।

अाज यह प्रश्न उठाने की अावश्यकता है कि क्या यह तथाकथित बाजार पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का स्वाभाविक संकट है? क्या इसका निदान इस व्यवस्था में है, या हमें किसी वैकल्पिक व्यवस्था की तलाश करनी होगी जिसमें देशों की एक-दूसरे के अायातों और निर्यातों पर निर्भरता कम हो सके?

- अवधेश कुमार
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