कश्मीर, पीओके पर यूएन रिपोर्ट- अखंडता पर प्रहार

UN Report on Kashmir, PoK
मानवाधिकार की स्थिति पर अपनी तरह की पहली रिपोर्ट
भारत ने तीखी प्रतिक्रिया जताई
जिनेवा/नई दिल्ली, 14 जून
संयुवÌत राष्ट्र ने कश्मीर और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में कथित मानवाधिकार उल्लंघन पर अपनी तरह की पहली रिपोर्ट अाज जारी की और इन उल्लंघनों की अंतर्राष्ट्रीय जाँच कराने की माँग की।
रिपोर्ट पर तीखी प्रति¯ाया जताते हुए भारत ने इसे भ्रामक, पक्षपातपूर्ण और प्रेरित बताकर खारिज कर दिया और संयुवÌत राष्ट्र में अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया।
विदेश मंत्रालय ने इस पर कड़ी प्रति¯ाया व्यवÌत करते हुए कहा कि रिपोर्ट पूरी तरह से पूर्वाग्रह से प्रेरित है और गलत तस्वीर पेश करने का प्रयास कर रही है। मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि यह देश की सम्प्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन है।
मंत्रालय ने कहा कि यह रिपोर्ट भारत की सम्प्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करती है। सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है। पाकिस्तान ने भारत के इस राज्य के एक हिस्से पर अवैध और जबरन कब्जा कर रखा है।
मानवाधिकार उच्चायुवÌत के संयुवÌत राष्ट्र कार्यालय ने पाकिस्तान से शांतिपूर्वक काम करने वाले कार्यकर्ताओं के खिलाफ अातंक रोधी कानूनों का दुरूपयोग रोकने और असंतोष की अावाज के दमन को भी बंद करने को कहा। रिपोर्ट में कहा गया है कि मानवाधिकार उल्लंघन की अतीत की और मौजूदा घटनाओं के तुरंत समाधान की जरूरत है। इसमें कहा गया है, कश्मीर में राजनीतिक स्थिति के किसी भी समाधान में हिंसा का च¯ा रोकने के संबंध में प्रतिबद्धता और पूर्व में तथा मौजूदा मानवाधिकार उल्लंघनों को लेकर जवाबदेही होनी चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है, नियंत्रण रेखा के दोनों तरफ लोगों पर नुकसानदेह असर पड़ा है और उन्हें मानवाधिकार से वंचित किया गया या सीमित किया गया।
जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के बीच कोई तुलना नहीं हो सकती, वÌयोंकि जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुयी सरकार है, जबकि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में मनमाने तरीके से पाकिस्तानी राजनयिक को वहाँ का प्रमुख नियुवÌत किया जाता है।     
कश्मीर में मानवाधिकार की स्थिति पर संयुवÌत राष्ट्र की रिपोर्ट में जून-2016 से अप्रैल 2018 तक भारतीय राज्य जम्मू-कश्मीर में घटना¯ाम, और अाजाद जम्मू-कश्मीर तथा गिलगित-बालटिस्तान में मानवाधिकार से जुड़ी अाम चिंताएँ विषय को शामिल किया गया है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 1980 के दशक के अंत से जम्मू-कश्मीर राज्य में विभिन्न तरह के हथियारबंद समूह सि¯ाय हैं।
भारतीय सुरक्षा बलों के हाथों हिज्बुल मुजाहिदीन के अातंकवादी बुरहान वानी के  मारे जाने के बाद घाटी में अप्रत्याशित विरोध प्रदर्शन का भी जि¯ा रिपोर्ट में किया गया है।
इस तरह के प्रत्यक्ष सबूत हैं कि इन समूहों ने अाम नागरिकों का अपहरण और उनकी हत्याएँ, यौन हिंसा सहित विभिन्न तरह से मानवाधिकारों का उल्लंघन किया है।
रिपोर्ट में कहा गया है, इन समूहों को किसी भी तरह के समर्थन से पाकिस्तान सरकार के इंकार के दावों के बावजूद विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तानी सेना नियंत्रण रेखा के पार कश्मीर में उनकी गतिविधियों में सहयोग करती है।
रिपोर्ट में सशस्त्र बल (जम्मू-कश्मीर) विशेषाधिकार कानून, 1990 को तुरंत निरस्त करने और मानवाधिकार उल्लंघन के अारोपी सुरक्षा बलों के खिलाफ अदालतों में मुकदमा चलाने के लिए केंद्र सरकार से पूर्व की अनुमति की बाध्यता को भी हटाने की माँग की गयी है।
पहली बार यूएनएचअारसी ने कश्मीर और पीओके में कथित मानवाधिकार उल्लंघन पर कोई रिपोर्ट जारी की है।
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