निराश करती उत्तराखंड सरकार

भाजपा की केंद्र सरकार जिन गंभीर और कष्टकारी विषयों पर अाँखें मूंदे बैठी है, उनमें से एक है- उत्तराखंड की भाजपा सरकार की कार्यप्रणाली। दो-ढाई वर्ष पहले भाजपा राज्य में बहुमत के अाधार पर सत्तारूढ़ हुई थी, लेकिन मुख्यमंत्री के स्तर पर उत्तराखंड के हित में ऐसा कोई कार्य या विशेष नीतिगत पहल दिख नहीं रही, जिससे लगे कि केंद्र में मोदी तथा यूपी में योगी से प्रेरणा लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी कुछ नया और क्रांतिकारी कर रहे हैं। जनजीवन की जो मूलभूत समस्याएँ कांग्रेस छोड़कर गई थी, उनके निराकरण के लिए कोई राजनीतिक इच्छाशक्ति कहीं नहीं दिखाई देती। राज्य के सभी काम उसी नीतिगत पंगुता और भ्रष्टाचार की शैली के अंतर्गत चल रहे हैं, जैसे पहले चलते अाए थे।

इन परिस्थितियों को देखकर लगता है कि भाजपा का बहुमत से राज्य के शासन पर विराजना और केंद्र में बहुमत की भाजपा सरकार का होना भी उत्तराखंड के लिए कहीं से भी लाभकारी नहीं। उत्तराखंड चुनाव प्रचार अभियान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता से भाजपा को जिताने, और जीतने पर केंद्र व राज्य की डबल इंजन की सरकारों के दम पर राज्य के समयानुकूल और समुचित विकास के जो वायदे किए, वे वर्तमान मुख्यमंत्री की राजनीतिक अकर्मण्यता के कारण कोरे ही साबित हो रहे हैं।

त्रिवेंद्र सिंह रावत के बारे में अधिसंख्य संवेदनशील उत्तराखंडवासी इस बात से तो निराश ही थे कि वे प्रधानमंत्री और यूपी के मुख्यमंत्री अादित्यनाथ की राजनीतिक शैली का अनुसरण करते हुए समर्पण और नवदृष्टिकोण के साथ काम नहीं कर रहे, लेकिन विगत 27 जून को `जनता मिलन' कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने जिस तरह से एक शिक्षिका के साथ दुर्व्यवहार किया, उससे लोगों की निराशा क्रोध में बदल गई।

उल्लेखनीय है कि `जनता मिलन' कार्यक्रम के दौरान उत्तरकाशी जिले के नौगांव प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत शिक्षिका उत्तरा बहुगुणा पंत ने मुख्यमंत्री से प्रार्थना की कि उन्हें नौगांव से देहरादून स्थानांतरित कर दिया जाए। उत्तरा ने कहा कि वे विधवा हैं तथा उनके बच्चे अकेले देहरादून में रहते हैं, इसलिए वे देहरादून में स्थानांतरण चाहती हैं।

मुख्यमंत्री द्वारा यह पूछे जाने पर- कि नौकरी लेते वक्त उन्होंने क्या लिख के दिया था- उत्तरा ने जवाब दिया कि उन्होंने यह लिखकर नहीं दिया कि वे जीवनभर वनवास में रहेंगी। इस पर मुख्यमंत्री धैर्य खो बैठे और उन्होंने उत्तरा को सभ्यता से बोलने को कहा। उत्तरा को अाशा न थी कि मुख्यमंत्री उनके साथ महिला होने के नाते ऐसा व्यवहार करेंगे, इसलिए वे पीड़ाकुल होकर कहने लगीं कि अगर ऐसा है तो `बेटी पढ़ाओ और बेटी बढ़ाओ' का ढोंग क्यों? इस पर मुख्यमंत्री ने उत्तरा को निलंबित करने तथा उन्हें हिरासत में लेने को कहा।

`जनता मिलन' कार्यक्रम की उक्त घटना के वीडियो में साफ दिखाई दे रहा है कि उत्तरा जब अपनी व्यथा मुख्यमंत्री को बता रही थीं, तो पृष्ठभूमि में खड़े कुछ पुरूष उनके दुखड़े पर असभ्यता से हँस रहे थे। उत्तरा की व्यथा को मुख्यमंत्री ने असहज करनेवाले प्रश्न से और बढ़ा दिया कि- उन्होंने नौकरी करते समय क्या लिख कर दिया था? ऐसे में अाम नागरिक का गुस्सा होना स्वाभाविक है। किसी राज्य का मुख्यमंत्री यदि एक स्त्री के साथ सार्वजनिक सभा में ऐसा व्यवहार करता है, तो यह उसे बिलकुल शोभा नहीं देता। यदि उस स्राr की समस्या को सुनकर, उस पर अपेक्षित कार्रवाई करने की बात मुख्यमंत्री कह देते तो क्या बिगड़ जाता!

क्या 25 वर्षों तक दुर्गम स्थानों पर नौकरी करनेवाला शहर में अाने का हकदार नहीं होता? फिर मुख्यमंत्री भी तो अपने मंत्रिमंडल और दूसरे नेताअों के साथ, चुनाव जीतने के बाद देहरादून में ही बैठे हुए हैं। क्या जनता को मुख्यमंत्री सहित उनके पूरे मंत्रिमंडल को यह पूछने का हक नहीं कि अाखिर वे लोग अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों की जन समस्याअों की अनदेखी कर, देहरादून में बैठे रहकर उनका कौन-सा वास्तविक समाधान निकाल रहे हैं?

इस बरसात से पहले ज्यादातर पहाड़ी क्षेत्रों में जल संकट व्याप्त था, लेकिन विधायक अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों से नदारद मिले। राज्य में मदिरा के करोबार को सुगम और सहज करने के लिए सरकार जितने कार्य कर रही है, यदि उतने कार्य जनता के विकास के लिए किए होते तो परिदृश्य कुछ और होता। भू, शराब, राशन, बिल्डिंग मैटीरियल माफियाअों के हिसाब से ही राज्य की सरकार और उसका शासन-प्रशासन चल रहा है। यदि ऐसा ही चलना था, तो कांग्रेस क्या बुरी थी।

राज्य के अार्थिक हित की चिंता करते हुए, उसकी भरपाई यदि शराब के कारोबार से पूरा करने की नीतियाँ बन रही हैं, तो ऐसे राज्य की अावश्यकता ही क्या है? ऐसे बाrमारू राज्य को केंद्र के ही अधीन क्यों नहीं रख लिया जाता? पिछले दो-ढाई वर्ष के कार्यकाल में भाजपा के मुख्यमंत्री ने ऐसा राजनीतिक संकल्प, दिग्दृष्टि और ऊर्जा नहीं दिखाई कि लोगों को लग सके कि सरकार पूर्व की सरकारों से कुछ विशेष और अलग कर रही है। यहाँ तक कि केंद्र की जनकल्याणकारी योजनाअों को भी राज्य सरकार अपनी नौकरशाही के माध्यम से ढंग से लोगों तक नहीं पहुँचा पा रही।

खाद्यान्न, शिक्षा, स्वास्थ्य, वन क्षेत्र, खेती, रोजगार, पलायन, अवैध मुस्लिम प्रवासन अादि अनेक विषय हैं, जिन पर वर्तमान सरकार ने कोई ऐसा काम नहीं किया जो उल्लेखनीय और प्रशंसनीय हो। उत्तराखंड में भूमि की चकबंदी की जरूरत कब से महसूस की जा रही है। यह काम ऐसा है, जिससे पलायन भी रूकेगा और स्थानीय स्तर पर रोजगार भी सृजित होगा। लेकिन स्थानीय नेताअों के कारण यह काम भी टलता हुअा अा रहा है।

उत्तराखंड की तरह हिमाचल प्रदेश भी पहाड़ी राज्य है। वहाँ चकबंदी होने का परिणाम यह रहा कि अाज कोई हिमाचलवासी प्रदेश से बाहर नौकरी के लिए भटकता हुअा नहीं दिखाई देता। विगत दिनों तापमान बढ़ने से उत्तराखंड के जंगलों में अाग लगी। अाग हर वर्ष लगती है और जिन कारणों से अाग लगती है, उनमें एक बड़ा कारण है- चीड़ के पेड़।

इतने वर्षों से कोई सरकार ऐसा संकल्प नहीं दिखा पाई कि वन अधिनियम में संशोधन कराकर चीड़ के पेड़ों की कटान की व्यवस्था की जाए। यदि पूरे पहाड़ी क्षेत्र से चीड़ के पेड़ न भी काटे जाएँ, पर उन स्थानों से तो काटने ही होंगे, जहाँ ऊंचाई वाले क्षेत्रों में गाँववासियों के प्राकृतिक जलस्रोत हैं। लेकिन इस दिशा में भी वर्तमान सरकार कुछ नहीं कर रही।

जिस राज्य का मुख्यमंत्री इतनी गंभीर और जटिल समस्याअों पर चिंतन-मंथन करने और कुछ कार्य करने के स्थान पर एक सामान्य `जनता मिलन' कार्यक्रम में एक महिला की शिकायत पर अपना अापा खो दे, ऐसे व्यक्ति को शीर्ष पद पर बैठने का कोई हक नहीं होना चाहिए। इन परिस्थितियों में मोदी सरकार को उत्तराखंड में शीर्ष स्तर पर न केवल योग्य मुख्यमंत्री बदलने की अावश्यकता है, अपितु राज्य के सभी विधायकों को अपने-अपने क्षेत्रों में जमीनी स्तर पर लोगों की समस्याअों का समाधान करने के लिए भी दौड़ाना होगा।

- विकेश कुमार बडोला
Comments System WIDGET PACK